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Yoga MCQ for UGC NET, QCI, Yoga Protocol Instructor exam

1. "स्थिर सुखम आसनम" यह परिभाषा किसके द्वारा दी गई है:

A. महर्षि वेदव्यास B. महर्षि पतंजलि
C. महर्षि घेरंड D. महर्षि कपिल

2. योगसूत्र के अनुसार समाधि के मुख्य प्रकार हैं:
A 2 B 4 C 6 D 3

3. 'पतंजलि योग सूत्र' में यम के कितने भागों का वर्णन किया गया है?
A 5 B  6 C  8 D 10

4. 'योगस्य चित्त वृत्ति निरोधः' योग की यह परिभाषा किसने दी?
A. महर्षि व्यास B. महर्षि पतंजलि
C. महर्षि कपिल D. महर्षि घेरंड

5. आसनों के अभ्यास से दूर होता है?
A. रजस गुण B. तमस गुण:
C. सत्व गुण D. A और B दोनों

6. 'कपालभाति' में 'भाति' शब्द का क्या अर्थ है?
A.  चमकना  B.  सिर
C. लाइट       D. A और B दोनों

7. वृत्ति जो शून्य वस्तु ज्ञान को दर्शाती है | किस नाम से जाना जाता है:
A. प्रमाण वृत्ति B. स्मृति वृत्ति
C. विपर्य वृत्ति D. विकल्प वृत्ति

8. दुःखों और कष्टों का कारण बनने वाली वृत्ति कहलाती है:
A. अकालिष्ट वृत्ति B. कलिष्ट वृत्ति
C. प्रमाण वृत्ति       D. A और B दोनों

9. निम्नलिखित में से कौन एक वृत्ति नही है?
A. निंद्रा वृत्ति B. स्मृति वृत्ति
C. विकल्प वृत्ति D. मुद्रा वृत्ति

10. बाह्य वस्तुओं से इन्द्रियों के लगाव के कारण उत्पन्न वस्तुओं के ज्ञान को किस प्रकार की वृत्ति कहा जाता है?
A. प्रत्यक्ष प्रमाण B. आगम प्रमाण
C. अनुमान प्रमाण D. अप्रत्यक्ष प्रमाण

11. सर्प के रूप में रस्सी की धारणा किस प्रकार की वृत्ति का परिणाम है?

A. प्रमाण वृत्ति B. विपर्य वृत्ति
C. विकल्प वृत्ति D. निंद्रा वृत्ति

12. विपर्य वृत्ति के कारण उत्पन्न धारणा हमेशा होती है:
A. स्थिर        B. अस्थिर
C. वास्तविक D. इनमें से कोई नहीं

13. निम्नलिखित में से कौन विकल्प वृत्ति है?
A. अनुवृति     B. अभिवृत्ति
C. अनहवृत्ति   D. निंद्रावृत्ति

14. निम्न में से कौन निर्बिज समाधि की एक अवस्था है?
A. एकग्रावस्था     B. शून्यावस्था
C. विक्षिप्तावस्था D. निरुद्धावस्था

15. पतंजलि योग सूत्र' के किस अध्याय में 'देशबंधस्चित्स्य धारणा' पंक्ति का वर्णन किया गया है?
A. समाधि पाद B. केवल्य पाद
C. साधना पाद D. विभूति पाद

16. निम्नलिखित में से किसे चित्तवृत्ति को अवरुद्ध करने का साधन माना जाता है?
A. यम नियम
B. आसन और मुद्रा
C. धारणा और ध्यान
D. अभ्यास और वैराग्य

17. बाह्य विषयों से इन्द्रियों को हटाकर आत्मा की ओर उनकी दिशा को उलटना कहलाता है-
A. प्रत्याहार B. अस्तेय
C. धारणा    D. ईश्वर प्रणिधान

18. सभी क्लेशों का मुख्य कारण है:
A. राग  B. द्वेशा
C. अविद्या D. अहंकार

19. निम्नलिखित में से कौन एक अनुमन प्रमाण नहीं है?
A. पूर्ववत B. शेषवत
C. साक्षीवत  D. इनमे से कोई नही

20. पूर्वाग्रह के प्रभाव से जब कोई व्यक्ति किसी चीज के बारे में बोध करता है, तो उसे....... वृत्ति के रूप में जाना जाता है।
A. विकल्प वृत्ति B. विपर्य वृत्ति
C. निंद्रा वृत्ति   D. प्रमाण वृत्ति

21. एक सिद्ध पुरुष के शब्दों के कारण उत्पन्न धारणा को कहा जाता है:
A. प्रत्यक्ष प्रमाण   B. यथार्थ प्रमाण
C. अनुमान प्रमाण D. आगम प्रमाण

22. 'पतंजलि योग सूत्र' में कुल सूत्रों की संख्या है:
A. 155,   B. 175,   C. 185,   D. 195

23. 'पतंजलि योग सूत्र' का अंतिम अध्याय कौन सा है?
A. साधनापाद B. समाधिपाद
C. कैवल्यपाद D. विभूतिपाद

24. कलिष्ट वृत्तियां प्रमुख हैं?
A. तमस गुण B. रजस गुण
C. सत्व गुण  D. उपरोक्त सभी

25. अकलिष्ट वृत्तियां प्रमुख हैं?
A. तमस गुण B. रजस गुण
C. सत्व गुण  D. उपरोक्त सभी

Answer-  1- B, 2- A, 3- A, 4-B, 5-D, 6-A, 7-D, 8-B, 9-D, 10-A, 11-B, 12-B, 13-C, 14-D, 15-D, 16-D, 17-A, 18-C, 19-C,  20-A, 21-D, 22-D, 23-C, 24-A, 25-C

To be Continued...

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घेरण्ड संहिता में वर्णित "प्राणायाम" -- विधि, लाभ एवं सावधानियाँ

घेरण्ड संहिता के अनुसार प्राणायाम घेरण्डसंहिता में महर्षि घेरण्ड ने आठ प्राणायाम (कुम्भको) का वर्णन किया है । प्राण के नियन्त्रण से मन नियन्त्रित होता है। अत: प्रायायाम की आवश्यकता बताई गई है। हठयोग प्रदीपिका की भांति प्राणायामों की संख्या घेरण्डसंहिता में भी आठ बताई गईं है किन्तु दोनो में थोडा अन्तर है। घेरण्डसंहिता मे कहा गया है- सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा। भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भका।। (घे.सं0 5 / 46) 1. सहित, 2. सूर्य भेदन, 3. उज्जायी, 4. शीतली, 5. भस्त्रिका, 6. भ्रामरी, 7. मूर्च्छा तथा 8. केवली ये आठ कुम्भक (प्राणायाम) कहे गए हैं। प्राणायामों के अभ्यास से शरीर में हल्कापन आता है। 1. सहित प्राणायाम - सहित प्राणायाम दो प्रकार के होते है (i) संगर्भ और (ii) निगर्भ । सगर्भ प्राणायाम में बीज मन्त्र का प्रयोग किया जाता हैँ। और निगर्भ प्राणायाम का अभ्यास बीज मन्त्र रहित होता है। (i) सगर्भ प्राणायाम- इसके अभ्यास के लिये पहले ब्रह्मा पर ध्यान लगाना है, उन पर सजगता को केन्द्रित करते समय उन्हें लाल रंग में देखना है तथा यह कल्पना करनी है कि वे लाल है और रजस गुणों से...

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हठयोग प्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म

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हठयोग प्रदीपिका का सामान्य परिचय

हठयोग प्रदीपिका ग्रन्थ के रचयिता स्वामी स्वात्माराम योगी हैँ। इन्होंने हठयोग के चार अंगो का मुख्य रूप से वर्णन किया है तथा इन्ही को चार अध्यायों मे बाँटा गया है। स्वामी स्वात्माराम योगी द्वारा बताए गए योग के चार अंग इस प्रकार है । 1. आसन-  "हठस्थ प्रथमांगत्वादासनं पूर्वमुच्यतै"  कहकर योगी स्वात्माराम जी  ने प्रथम अंग के रुप में आसन का वर्णन किया है। इन आसनो का उद्देश्य स्थैर्य, आरोग्य तथा अंगलाघव बताया गया है   'कुर्यात्तदासनं स्थैर्यमारोग्यं चांगलाघवम् '।  ह.प्र. 1/17 आसनो के अभ्यास से साधक के शरीर मे स्थिरता आ जाती है। चंचलता समाप्त हो जाती हैं. लचीलापन आता है, आरोग्यता आ जाती है, शरीर हल्का हो जाता है 1 हठयोगप्रदीपिका में पन्द्रह आसनों का वर्णन किया गया है हठयोगप्रदीपिका में वर्णित 15 आसनों के नाम 1. स्वस्तिकासन , 2. गोमुखासन , 3. वीरासन , 4. कूर्मासन , 5. कुक्कुटासन . 6. उत्तानकूर्मासन , 7. धनुरासन , 8. मत्स्येन्द्रासन , 9. पश्चिमोत्तानासन , 10. मयूरासन , 11. शवासन , 12. सिद्धासन , 13. पद्मासन , 14. सिंहासन , 15. भद्रासना । 2. प्राणायाम- ...

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