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Showing posts from June, 2021

मांडूक्य उपनिषद

मांडूक्य उपनिषद (Mandukya upanishad) यह उपनिषद अथर्ववेद के ब्रह्म भाग से संबंधित है। इस उपनिषद में ओंकार की व्याख्या तथा उसकी उपासना के फल का वर्णन किया गया है। मांडूक्य उपनिषद दस उपनिषदों में सबसे छोटा है। इस उपनिषद में कुल 12 मंत्र है। यह उपनिषद अवांतर गद्यात्मक  (संवादात्मक) भ।षा शैली में है। मुख्य विषय-  चेतना की चार अवस्थाएं, इनका ओंकार से क्या सम्बन्ध है मांडूक्य उपनिषद में परमात्मा के 'साकार' व 'निराकार' दोनों रूपों की उपासना का वर्णन है। ब्रह्मा व आत्मा को 4 चरणों वाला बताया गया है- स्थूल, सूक्ष्म, कारण व अवयक्त। ईश्वर को 'वैश्वानर' कहा गया है। शरीर व ब्रह्मा में समानता बताई है। ओमकार की मात्राएँ- ऊ = अ + उ + म मत्राएँ हैं। चेतना की अवस्थाएं- चेतना की चार अवस्थाएँ हैं: 1. जागृत     2. स्वप्न     3. सुषुप्ति    4. तुरीय  1. जागृत अवस्था- इसकी मात्रा 'अ' से है। यह शरीर “वैश्वनार' होता है। इसमें चेतना बर्हिप्रज्ञ होती है।शरीर के 7 अंग है व 19 मुख होते हैं। इसमें स्थूल 'मुक' कहलाता है। 2. स्वप्न अवस्था- इसकी म...

मुण्डकोपनिषद

मुण्डकोपनिषद (Mundaka Upanishad) मुण्डकोपनिषद अथर्ववेद का उपनिषद है।. इस उपनिषद में 64 मन्त्र, तीन मुण्डक के 2-2 खण्ड है। संस्कृत भाषा, मन्त्रोपनिषद भी कहा जाता है। 'सत्यमेव जयते' मुण्डकोपनिषद से ही लिया गया है। परा-अपरा विद्या का ज्ञान। यज्ञों का वर्णन। सात लोकों का वर्णन। ब्रह्म को बींधने का मार्ग बताया गया है। ब्रह्म के गुणों के बारे में बताया गया है। इस उपनिषद में ब्रह्म विद्या का उपदेश किया गया है। ब्रह्म विद्या- ब्रह्मा विद्या का उपदेश सबसे पहले ब्रह्मा ने क्रमश: दिया:- ब्रह्मा-  अर्थवा-  अंगिर-  सत्यवाह-  अंगिरा-  शौनक ब्रह्म के तीन विशेषण दिए गए है- देवों में प्रथम देव हैं।  जगतकर्ता हैं।  जगत रक्षक है। ब्रह्मा शब्द का अर्थ-वृद्धि की इच्छा करने वाला है। जीव रूप में पुरूष शुरू में अकेला होने से भयभीत या जब तक अकेला (पुरूष) होता है भयभीत रहता है। स्त्री और पुरूष मिलकर एक दाने की तरह पूर्ण पुरुष बनता है। सृष्टि के आरम्भ में चारों वेदों से 1-1 का ज्ञान ऋग्वेद -      अग्नि        ...

प्रश्नोपनिषद

प्रश्नोपनिषद- (Prashnopanishad) यह उपनिषद अथर्ववेद से सम्बन्धित है। अवांतर (संवादात्मक) भाषा शैली मे है। महर्षि “पिप्पलाद” से 6 ऋषि प्रश्न पूछने आते है। इसीलिए इसका नाम प्रश्नोपनिषद पडा। मुख्य विषयः-  रयि व प्राण की अवधारना, पंचप्राण, छः प्रश्न और उनके उत्तर छः ऋषि  - 1. कात्य पुत्र  कबंन्धी  2. भृगु पुत्र वैदर्भि  3. अश्वल पुत्र कौशल्य 4. सोर्य पुत्र .गार्ग्य 5. शिवि पुत्र . सत्यकाम  6. भारद्वाज गोत्र पुत्र सुकेशा ये छ: व्यक्ति 'पिप्पलादि' ऋषि के पास गए। पिप्पलाद ऋषि ने उन्हें तप, ब्रह्मचर्य व श्रद्धा से एक वर्ष तक अभ्यास करने के उपरान्त प्रश्न पूछने को कहा। छः ऋषि के 6 प्रश्न तथा महर्षि “पिप्पलाद द्वारा दिए गए उन प्रश्नो के उत्तर इस प्रकार है। 1. कात्य पुत्र कबन्धी- प्रश्न न0 1 - ये प्रजा किससे उत्पन्न हुई है (सृष्टि के प्रारंभ में)? उत्तर- सृष्टि की उत्पत्ति के लिए प्रजापति ने तप किया। इस 'तप' से “मिथुन” उत्पन्न हुआ। मिथुन = रयि + प्राण रयि व प्राण की अवधारना- (Concept of rayi and prana)     रयि       - ...

कठोपनिषद

कठोपनिषद (Kathopanishad) - यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत आता है। इसमें दो अध्याय हैं जिनमें 3-3 वल्लियाँ हैं। पद्यात्मक भाषा शैली में है। मुख्य विषय- योग की परिभाषा, नचिकेता - यम के बीच संवाद, आत्मा की प्रकृति, आत्मा का बोध, कठोपनिषद में योग की परिभाषा :- प्राण, मन व इन्दियों का एक हो जाना, एकाग्रावस्था को प्राप्त कर लेना, बाह्य विषयों से विमुख होकर इन्द्रियों का मन में और मन का आत्मा मे लग जाना, प्राण का निश्चल हो जाना योग है। इन्द्रियों की स्थिर धारणा अवस्था ही योग है। इन्द्रियों की चंचलता को समाप्त कर उन्हें स्थिर करना ही योग है। कठोपनिषद में कहा गया है। “स्थिराम इन्द्रिय धारणाम्‌” .  नचिकेता-यम के बीच संवाद (कहानी) - नचिकेता पुत्र वाजश्रवा एक बार वाजश्रवा किसी को गाय दान दे रहे थे, वो गाय बिना दूध वाली थी, तब नचिकेता ( वाजश्रवा के पुत्र ) ने टोका कि दान में तो अपनी प्रिय वस्तु देते हैं आप ये बिना दूध देने वाली गाय क्यो दान में दे रहे है। वाद विवाद में नचिकेता ने कहा आप मुझे किसे दान में देगे, तब पिता वाजश्रवा को गुस्सा आया और उसने नचिकेता को कहा कि तुम ...

21 June International yoga day yoga protocol

  21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस योग प्रोटोकाॅल   1. मंगलाचरण (वंदना)- योग का अभ्यास प्रार्थना के मनोभाव के साथ शुरू करना चाहिए। ऐसा करने से योग अभ्यास से अधिकाधिक लाभ होगा।  ॐ संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्‌ देवा भागं यथा पूर्वे सञजानाना उपासते।। अर्थात्‌ हम सभी प्रेम से मिलकर चलें, मिलकर बोलें और सभी ज्ञानी बनें। हा अपने पूर्वजों की भांति हम सभी कर्त्तव्यों का पालन करें। सदिलज,/ चालन क्रियाएं / शिथिलीकरण अभ्यास 2. सदिलज /चालन क्रिया / शिथिलीकरण के अभ्यास  शरीर में सूक्ष्म संचरण बढाने में सहायता प्रदान करते हैं। इस अभ्यास को खड़े होकर या बैठकर किया जा सकता है। (क) ग्रीवा चालन (ग्रीवा शक्ति विकासक) शारीरिक स्थिति : समस्थिति ग्रीवा चालन अभ्यास विधि-  ख) स्कंध संचालन: - स्थिति : समस्थिति (सजग स्थिति) चरण : - स्कंघ खिंचाव  स्कंध संचालन अभ्यास विधि :-   (ग) कटि चालन कटि चालन (कटिशक्ति विकासक)   शारीरिक स्थिति : समस्थिति (सजग स्थिति)  अभ्यास विधि :- (घ) घुटना संचालन - शारीरिक स्थिति : समस्थिति (सजग स्थिति)  अभ्यास विधि :- ...

International yoga day | Yoga song

           अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस योग गीत “तन मन जीवन चलो संवारें योग मार्ग अपनाएँ, वैर भाव को त्याग सभी हम गीत मिलन के गायें। आनंदमय हो जीवन सबका योग यही सिखलाये हों तनाव भयमुक्त सभी जन दिव्य प्रेम सरसायें। यम और नियम हमारे सम्बल सुखमय जगत बनाएं, आसन प्राणायाम ध्यान से स्वास्थ्य शांति सब पाएं! ऊर्जावान बने सब साधक संशय सभी मिटायें विश्व एक परिवार योग कर स्वर्ग धरा पर लाएं।”

केनोपनिषद

2. केन- (केनोपनिषद- Kenopanishad)  यह उपनिषद सामवेद के “तलकवार ब्राह्मण” के 9 वें अध्याय पर है। पहले मंत्र का पहला शब्द 'केनेषितं' यानि केन से शुरू है इसलिए केन उपनिषद कहा जाता है। इसे 'जैमिनी” व “ब्राह्मणो' उपनिषद्‌ भी कहते हैं।   केनोपनिषद उपनिषद चार खण्डों में विभाजित है। प्रथम व द्वितीय खंड में- गुरु शिष्य परंपरा द्वारा प्रेरक सत्ता के बारे में बताया गया है। तीसरे और चौथे खंड में- देवताओं में अभिमान व देवी ऊमा हेमवती द्वारा "ब्रह्म तत्व' ज्ञान का उल्लेख है। मनुष्य को ” श्रेय” मार्ग की ओर प्रेरित करना इस उपनिषद का लक्ष्य है। श्रेय (ब्रह्म) को तप, दम व कर्म से अनुभव किया जाता है। ब्रह्म को ज्ञान द्वारा जानने का प्रयत्न कर सकते हैं। अमरत्व की प्राप्ति ब्रह्म ज्ञान द्वारा होती है। मुख्य विषय- इन्द्रिया एवं अन्तःकरण, स्व और मानस, सत्य का अनुभव, यक्षोपाख्यान   अंतर्यामी शक्ति- सभी इन्द्रियों का मूल परमात्मा है। जो वाणी द्वारा प्रकाशित नहीं होता बल्कि जिससे वाणी का प्रकाश होता है वह ब्रंह्म है। जो आँखों से नहीं देखा जाता बल्कि जिससे आँखें देखती है वह ब्रह्म ...