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Showing posts from September, 2023

कटि स्नान | रीठ स्नान | जल चिकित्सा | प्राकृतिक चिकित्सा

 पंचमहाभूतों (आकाश , वायु , अग्नि , जल तथा पृथ्वी) में जल तत्व दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके शरीर में सम अवस्था (संतुलित अवस्था) में बना रहना अत्यन्त अनिवार्य है। जब तक यह तत्व समअवस्था में रहता है तब तक शरीर स्वस्थ बना रहता है तथा इस तत्व के विकृत होने पर भिन्न भिन्न रोग पैदा होते हैं। कटि स्नान-   तीव्र रोगों में स्नान जल्दी जल्दी और कई बार तथा जीर्ण रोगों में 1-2 बार ही देना चाहिए। कटि स्नान से सभी रोगों में लाभ पहुँचता है कटि स्नान से पेड्टू की बड़ी हुई गर्मी कम होती है। इस समान से आँतों में रक्त का संचार बढ़ जाता है जिससे वहाँ जमा मल शरीर से बाहर होने में मदद मिलती है। कटि स्नान पेट को साफ करने के साथ साथ एक यकृत तिलल्ली एवं आंतों के रस स्राव को भी बढ़ाता है। जिससे पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। ज्वर, सिरदर्द, भू अवरूढता, कब्ज गैस, बवासीर, पीलिया, मदाग्नि, आंतों की सडान, पेट की गर्मी, अजीर्ण तथा उदर सम्बन्धी रोगों में बहुत ही उपयोगी है। कटि स्नान के लिये सामग्री- कटि स्नान टब, छोटा तौलिया। (अ) गर्म कटि स्नान- पानी का तापमान शरीर के तापमान से कुछ अधिक सहने योग्य अर्थात 100-104 डिग

जल चिकित्सा की अवधारणा, गुण, प्रभाव, जल चिकित्सा में प्रयुक्त जल का उपयुक्त तापमान

  हमारे शरीर का निर्माण करने वाले पंच तत्वों में जल तत्व दूसरा प्रमुख तत्व है जिससे शरीर का लगभग 70 प्रतिशत भाग बनता है। इस जल को जीवन का पर्यायवाची मानकर जल ही जीवन है की लोकोक्ति समाज में प्रचलित है। शरीर में इस जल तत्व की सम अवस्था स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है क् ‍ योंकि - शरीर में इस जल तत्व की कमी होने पर भिन् ‍ न - भिन् ‍ न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस जल तत्व का चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत अधिक महत्व है तथा जल द्वारा चिकित्सा " जल चिकित्सा " सम्पूर्ण विश्व में एक विशिष्ट स्थान बनाए हैं। जल चिकित्सा आज बहुत बडे रुप में विकसित हो गयी है।   जल का प्रयोग एक महाऔषधी के रुप में प्रयोग किया जाता है। जल चिकित्सा की अवधारणा - प्रकृति ने पृथ्वी पर 3 चौथाई जल ही जल दिया है। शरीर के कुल वजन का 70 प्रतिशत भाग जल ही है। इसी से आप समझ सकते है कि जल तत्व कितना आवश्यक है। जल प्राणियों के जीवन का आधार है। जल जीवन के