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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्रियायोग की अवधारणा, क्रियायोग के साधन, क्रियायोग का उद्देश्य एवं महत्व

क्रियायोग की अवधारणा -   योगसूत्र में महर्षि पतंजलि ने चित्त की वृत्तियों के निरोध को ही योग कहा है। अर्थात्‌ चित्त की वृत्तियों का सर्वथा अभाव ही योग है। इस अभाव के फलस्वरूप आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित हों जाती है। इस अवस्था में पहुँचकर उसका इस संसार में आवागमन नहीं होता है। जो कि जीव की अन्तिम अवस्था कही जाती है।  इस  अवस्था की प्राप्ति के लिये महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में अभ्यास - वैराग्य एवं ईश्वरप्राणिधान की साधना बताई है किन्तु जिन योग साधको का अन्तःकरण शुद्ध है तथा जिसके पूर्व के अनुभव है अभ्यास - वैराग्य का साधन उन्हीं साधकों के लिए है। सामान्य व्यक्ति जो साधना आरम्भ करना चाहते है उनके लिए महर्षि पतंजलि ने साधनपाद में सर्वप्रथम क्रियायोग की साधना बतायी है। “तप स्वाध्यायेश्वरप्राणिधानानि क्रियायोग:"  (योगसूत्र साधनपाद- 1) अर्थात तप स्वाध्याय और ईश्वरप्राणिधान या ईश्वर के प्रति समर्पण यह तीनों ही क्रियायोग है। क्रियायोग समाधि के लिए पहला आधार है और वह तब फलित होता है जब तप स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण हो । क्रियायोग के साधन - महर्षि पतंजलि ने समाधि पाद में जो भी यो

मंत्रयोग की अवधारणा, उद्देश्य, मंत्रयोग के प्रकार, मंत्रजप की विधि

मंत्रयोग की अवधारणा वह शक्ति जो मन को बन्धन से मुक्त कर दे वही मंत्र योग है।“ मंत्र को सामान्य अर्थ ध्वनि कप्पन से लिया जाता है। मंत्रविज्ञान ध्वनि के विद्युत रुपान्तर की अनोखी साधना विधि है।   “मंत्रजपान्मनालयो मंत्रयोग: “ । अर्थात्‌ अभीष्ट मंत्र का जप करते-करते मन जब अपने आराध्य अपने ईष्टदेव के ध्यान में तन्मयता को प्राप्त कर लय भाव को प्राप्त कर लेता है, तब उसी अवस्था को मंत्रयोग के नाम से कहा जाता है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है-   “मननात्‌ तारयेत्‌ यस्तु स मंत्र परकीर्तित: “ । अर्थात्‌ यदि हम जिस ईष्टदेव का मन से स्मरण कर श्रद्धापूर्वक, ध्यान कर मंत्रजप करते है और वह दर्शन देकर हमें इस भवसागर से तार दे तो वही मंत्रयोग है। ईष्टदेव के चिन्तन करने, ध्यान करने तथा उनके मंत्रजप करने से हमारा अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है। मन का मैल धुल कर मन इष्टदेव में रम जाता है अर्थात लय भाव को प्राप्त हो जाता है। तब उस मंत्र मे दिव्य शक्ति का संचार होता है। जिसे जपने मात्र से मनुष्य संसार रूपी भवसागर से पार हो जाता है। मंत्र जप एक विज्ञान है, अनूठा रहस्य है जिसे आध्यात्म विज्ञानी ही उजागर कर सकते है