Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2021

हठयोग प्रदीपिका में वर्णित प्राणायाम

हठयोग प्रदीपिका में प्राणायाम को कुम्भक कहा है, स्वामी स्वात्माराम जी ने प्राणायामों का वर्णन करते हुए कहा है - सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी शीतल्री तथा।  भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्टकुंम्भका:।। (हठयोगप्रदीपिका- 2/44) अर्थात् - सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा और प्लाविनी में आठ प्रकार के कुम्भक (प्राणायाम) है। इनका वर्णन ऩिम्न प्रकार है 1. सूर्यभेदी प्राणायाम - हठयोग प्रदीपिका में सूर्यभेदन या सूर्यभेदी प्राणायाम का वर्णन इस प्रकार किया गया है - आसने सुखदे योगी बदध्वा चैवासनं ततः।  दक्षनाड्या समाकृष्य बहिस्थं पवन शनै:।।  आकेशादानखाग्राच्च निरोधावधि क्रुंभयेत। ततः शनैः सव्य नाड्या रेचयेत् पवन शनै:।। (ह.प्र. 2/48/49) अर्थात- पवित्र और समतल स्थान में उपयुक्त आसन बिछाकर उसके ऊपर पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि किसी आसन में सुखपूर्वक मेरुदण्ड, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए बैठेै। फिर दाहिने नासारन्ध्र अर्थात पिंगला नाडी से शनैः शनैः पूरक करें। आभ्यन्तर कुम्भक करें। कुम्भक के समय मूलबन्ध व जालन्धरबन्ध लगा कर रखें।  यथा शक्ति कुम्भक के पश्चात जालन्धरबन्ध ख

प्राणायाम के उद्देश्य, प्राणायाम के सिद्धान्त

प्राणायाम के उद्देश्य / प्राणायाम की उपयोगिता-    प्राणायाम के महत्व को जानते हुए हमारे ऋषिमुनियों ने बड़े सहज व स्पष्ट रुप से प्राणायाम की चर्चा की है। प्राण, वायु का शुद्ध व सात्विक अंश है इस प्राण शक्ति को पूरे शरीर में विस्तारित करना ही प्राणायाम है। प्राणायाम का उपयोग करके मानव जीवन को भली प्रकार जी सकता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसकी उपयोगिता विभिन्न शोधों के माध्यम से सिद्ध हो रही है। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति प्राणायाम के निरन्तर अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है। निःसन्देह प्राणायाम हमारे ऋषियों की मानव जाति के लिये अनुपम देन है। 1. शारीरिक उन्नति-  प्राणायाम के द्वारा साधक की शारीरिक स्थिति उन्नत होती है। आयुर्वेद का सिद्धान्त है कि जो स्वस्थ हों, उनको स्वस्थ रखा जाए और जो रोगी हो, उन्हें रोग मुक्त किया जाए।  'स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणम्आतुरस्य विकारप्रशमनम् आयुर्वेद की यह मान्यता योग पर भी इसी रूप में लागू होती है। प्राणायाम को योग का सार कहा गया है। प्राणायाम' द्वारा उक्त दोनों दृष्टिकोणों की पूर्ति होती है। प्राणायाम का अभ्यास करके साधक असीम बल, ते