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मांडूक्य उपनिषद

मांडूक्य उपनिषद (Mandukya upanishad)

यह उपनिषद अथर्ववेद के ब्रह्म भाग से संबंधित है। इस उपनिषद में ओंकार की व्याख्या तथा उसकी उपासना के फल का वर्णन किया गया है। मांडूक्य उपनिषद दस उपनिषदों में सबसे छोटा है। इस उपनिषद में कुल 12 मंत्र है। यह उपनिषद अवांतर गद्यात्मक  (संवादात्मक) भ।षा शैली में है।

मुख्य विषय-  चेतना की चार अवस्थाएं, इनका ओंकार से क्या सम्बन्ध है

मांडूक्य उपनिषद में परमात्मा के 'साकार' व 'निराकार' दोनों रूपों की उपासना का वर्णन है। ब्रह्मा व आत्मा को 4 चरणों वाला बताया गया है- स्थूल, सूक्ष्म, कारण व अवयक्त। ईश्वर को 'वैश्वानर' कहा गया है। शरीर व ब्रह्मा में समानता बताई है।
ओमकार की मात्राएँ- ऊ = अ + उ + म मत्राएँ हैं।
चेतना की अवस्थाएं- चेतना की चार अवस्थाएँ हैं:
1. जागृत     2. स्वप्न     3. सुषुप्ति    4. तुरीय 

1. जागृत अवस्था- इसकी मात्रा 'अ' से है। यह शरीर “वैश्वनार' होता है। इसमें चेतना बर्हिप्रज्ञ होती है।शरीर के 7 अंग है व 19 मुख होते हैं। इसमें स्थूल 'मुक' कहलाता है।
2. स्वप्न अवस्था- इसकी मात्रा 'उ' होती है। इसमें शरीर तेज स्वरूप होता है। इसमें चेतना 'अन्तः प्रज्ञ' होती है। इसमें भी शरीर के 7 अंग व 19 मुख होते हैं। इस अवस्था में 'प्रतिविवान मुक' होता है।
3. सुषुप्ति अवस्था- इसकी मात्रा 'म' होती है। इसमें शरीर 'प्राज्ञ' होता है। इसमें “चेतना प्रज्ञ' होता है। इसमें 'चेतो मुक' होता है।
4. तुरीय अवस्था- अदृश्य, अव्यवहार व अनित्य है। उपरोक्त तीनों का अभाव रहता है।
ओउम् से संबंध-

ओउम = 'अ', 'उ', 'म' । आकार, उकार तथा मकार से मिलकर बना है
आकार- जागृत (स्थूल विषय)
उकार - स्वप्न (सुक्ष्म विषय)
मकार - सुषुप्ति (जहां जागृत तथा स्वपन मिलते है)
अमात्रा - तुरीय (परमानंद अवस्था)

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