ईश्वर- ईश्वर के बारे में कहा है- “ईश्वरः ईशनशील इच्छामात्रेण सकलजगदुद्धरणक्षम:। अर्थात जो सब कुछ अर्थात समस्त जगत को केवल इच्छा मात्र से ही उत्पन्न और नष्ट करने में सक्षम है, वह ईश्वर है। ईश्वर के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं परन्तु आधार सभी का लगभग एक ही है। इसी श्रृंखला में यदि अध्ययन किया जाए तो शंकराचार्य , रामानुजाचार्य , मध्वाचार्य , निम्बार्काचार्य , वल्लभाचार्य तथा महर्षि दयानन्द के विचार विशिष्ट प्रतीत होते हैं। विविध विद्वानों के अनुसार ईश्वर- क. शंकराचार्य जी- आचार्य शंकर के मतानुसार ब्रह्म अंतिम सत्य है। परमार्थ और व्यवहार रूप में भेद है। परमार्थ रुप से ब्रह्म निर्गुण, निर्विशेष, निश्चल, नित्य, निर्विकार, असंग, अखण्ड, सजातीय -विजातीय -स्वगत भेद से रहित, कूटस्थ, एक, शुद्ध, चेतन, नित्यमुक्त, स्वयम्भू हैं। उपनिषद में भी ऐसा ही कहा गया है । श्रुतियों से ब्रह्म के निर्गुणत्व, निर्विशेषत्व तथा चैतन्य स्वरूप का प्रमाण मिलता है। माया के कारण भी ब्रह्म में द्वैत नहीं आता क्योंकि यह माया सत् और असत् से विलक्षण वस्तु है। ब्रह्म ही जगत का उपादान व न...
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