Skip to main content

"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र


7 Chakras in Human Body

हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है।

'चक्र' शब्द का अर्थ- 

'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है।
योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा गया है।
कुण्डलिनी शक्ति के मूल में छ: द्वारों द्वारा पहुँचा जा सकता है। इन्हे छ: द्वार या छ: ताले भी कहा जा सकता है। यह द्वार या ताले खोलकर ही उन शक्ति केन्द्रों तक साधक पहुँच सकता है। आध्यात्मिक भाषा में इन्हीं छः: अवरोधों को 'षट् चक्र' कहते हैं। 
सुषुम्ना के अन्तर्गत सबसे भीतर स्थित ब्रहम नाड़ी से ये छ: चक्र सम्बन्धित है इनकी उपमा माला के सूत्र में पिरोये हुए कमल पुष्पों से की जाती है। 
7 chakras in human body
 
चित्र द्वारा यह समझा जा सकता है कि कौन सा चक्र किस स्थान पर है मूलाधार चक्र योनि की सीध में स्वाधिष्ठान चक्र पेड़ू की सीध में, मणिपुर चक्र नाभि की सीध में, अनाहत चक्र हृदय की सीध में, विशुद्धि चक्र कंठ की सीध में और आज्ञा चक्र भृकुटि के मध्य में अवस्थित है। उनसे ऊपर सहस्त्रार है। चक्रों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है।


1. मूलाधार चक्र- यह ऊर्जा चक्र मेरूदण्ड के मूल में स्थित है। मूलाधार का शाब्दिक अर्थ मूल का अर्थ जड़ तथा आधार का अर्थ जगह होता है। मनुष्यों में विकास यात्रा का प्रस्थान बिन्दु मूलाधार होता है। मूलाधार उत्सर्जन संस्थान तथा जनन अंगों को नियन्त्रित करता है। इसका सम्बन्ध नासिका तथा प्राण शक्ति से होता है। मूलाधार को सक्रिय नासिकाग्र दृष्टि के अभ्यास द्वारा किया जा सकता है।
मूलाधार चक्र की आकृति चतुष्कोण रक्त वर्ण चार दलों वाला कमल होता है। इसके भीतर पीले रंग का वर्ग होता है। चारों दलों में अक्षर अर्थात वर्ण है। चारों पंखुडियों पर वं शं षं सं ये चार मात्रिका वर्ण है। चार मात्रिका वर्णो की चार ही वृत्तियाँ है काम, क्रोध, लोभ और मोह। चतुष्कोण युक्त सुवर्ण रंग के सहश पृथ्वी तत्व का मुख्य स्थान है, इसका तत्व बीज 'लं' है और इस पृथ्वी तत्व का गुण गन्ध है। इसमें लोक भू-लोक है। तत्व बीज का वाहन ऐरावत हाथी है। जिसके उपर इन्द्रदेव विराजमान है। इसके अधिपति देवता चतुर्मुख वाले ब्रहमा जी है। वह अपने शक्ति चतुर्भुजा डाकिनी के साथ विराजमान है।

मूलाधार चक्र के ध्यान का फल- इसके ध्यान का फल इस प्रकार है आनन्द व आरोग्यता का उदय होना, वाक्य सिद्धि, सृजनात्मकता, काव्य सिद्धि आदि दक्षता प्राप्त करना आदि विशेष ल्राभ है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र- मुलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर पेडू के पास स्वाधिष्ठान का स्थान है। स्व का अर्थ है स्वयं और अधिष्ठान का अर्थ जगह होता है। जब स्वाधिष्ठान में चेतना और ऊर्जा कार्य करने लगती है तो साधक में स्व तथा अहम की चेतना जाग्रत होने लगती है। स्वाधिष्ठान व मूलाधार मेँ निकटतम सम्बन्ध होता है। यह जनन अंगों से सम्बन्धित ग्रन्थियों को प्रभावित करता है।

इस चक्र की आकृति सिन्दुरी रंग के प्रकाश से युक्त छ: पंखुडी-दलों वाला कमल के समान हैं। इन छ: दलों पर बं, भं, मं, यं, रं, लं, ये छ: मात्रिका वर्ण हैं । इन छ दलों की छः प्रकार की वृत्तियां है। ये है प्रश्रय, अवज्ञा, मूर्च्छा, विश्वास, सर्वनाश और क़्रूरता। इसमें अद्धर्चन्द्राकार युक्त जल तत्व 'बं' श्वेत रंग का मुख्य स्थान है। जल तत्व का बीज  'बं' है इस जल तत्व का गुण रस है। इसका लोक भुवर्लोक है। जल तत्व बीज का वाहन मकर है। जिसके उपर जल देवता वरुणदेव विराजमान है। इसके अधिपति देवता विष्णु हैं जो अपनी चतुर्भुजा वाली राकिनी शक्ति के साथ शोभायमान है।

स्वाधिष्ठान चक्र के ध्यान का फल- इसके बीज मंत्र का मानसिक जाप करते हुए स्वाधिष्ठान चक्र का ध्यान करने से प्रबुद्ध बुद्धि का उदय होता है। तथा जिह्वा में सरस्वती का वास होता है तथा नवनिर्माण की शक्ति प्राप्त होती है।

3. मणिपुर चक्र-  मणिपूर चक्र हमारे शरीर में मेरूदण्ड के पीछे स्थित होता है। मणिपुर का शाब्दिक अर्थ मणि का अर्थ मोती तथा पुर का अर्थ नगर होता है अत: मणिपूर को मोतियों, मणियों का नगर भी कहा जाता है। यहाँ नाडियों के मिलन के उपरान्त तीव्र आलोक का विकरण होता है। इस आलोक की तुलना योग ग्रन्थों में जाज्यल्यमान मोतियों की आभा से की गई है। मणिपुर में अग्नि तत्व स्थित माना जाता है। जो जठराग्नि को प्रदीप्त करता है। मणिपुर चक्र का संबंध आत्मीकरण, प्राण ऊर्जा और भोजन के पाचन से है।
मणिपुर चक्र का स्थान नाभिमूल है। इसकी आकृति अरुण आभा युक्त आलोकित दस दलों वाले कमल के समान होती है, इनके दस दलों में दस मात्रिका वर्ण है डं, ढं, णं, तं, थं, दं, थं, नं, पं, फं, इन दस मत्रिका वर्णों या अक्षरों की ध्वनियाँ विभिन्न प्रकार से होकर निकलती है। इन दस दलों की दस वृत्तियाँ इस प्रकार है लज्जा, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाद, तृष्णा, मोह, घृणा और भय। त्रिकोणाकार रक्तवर्ण अग्नितत्व का मुख्य स्थान है। अग्नितत्व का बीज  'रं' है। अग्नितत्व की स्वाभाविक गुणानुसार इस तत्वबीज की गति ऊपर की ओर होती है तत्वबीज का वाहक मेष है और उसके ऊपर अग्निदेवता विराजमान हैं इसका अधिपति देवता इन्द्र अपनी चतुभुर्जा शक्ति लाकिनी के साथ शोभायमान है।

मणिपुर चक्र के ध्यान का फल- अग्नि के ध्यान बीज मंत्र 'रं' का ध्यान करने से मानसिक कायव्यूह का ज्ञान हो जाता है और पालन तथा संहार की शक्ति आती है। योगी तेजस्वी हो जाता है। शरीर कान्तियुक्त हो जाता है।

4. अनाहत चक्र- चौथे चक्र का नाम अनाहत चक्र है। हमारे शरीर में स्थित मेरूदण्ड में हृदय के पीछे अनाहत चक्र है। अनाहत यदि शाब्दिक अर्थ लिया जाए तो अनाहत का अर्थ होता है 'चोट नहीं करना' इस अनाहत चक्र का स्थान हृदय प्रदेश है। अनाहत चक्र आकृति परम उज्जवल नव पुष्पित कमलाकार धूसर रंग युक्त है। इस चक्र में बारह दल होते है, बारह दलों पर बारह मात्रिका वर्ण है। कं, खं, गं, घं, डं, चं, छं, जं, झं, नं, टं, ठं, इन द्वादस वायुतत्व के गुण धर्म वृत्तियाँ है- आशा, चिन्ता, चेष्टा, मतता, दम्भ, विफलता, विवेक, अंहकार, कपटता, वितर्क और अनुताप, वायुतत्व का बीज “यं' है और इस तत्वबीज की गति तिर्यक गति है। वायुतत्व का गुण स्पर्श है। इसको शास्त्र में दिव्य लोक भी कहा गया है। इसका अधिपति देवता रुद्र है जो अपनी त्रिनेत्रा चतुर्भुजा शक्ति काकिनी के साथ विराजमान है। षटकोणयुक्त इस चक्र का यन्त्र है और उसका रंग ध्रूमवर्ण है।

अनाहत चक्र के ध्यान का फल- वायुतत्व के बीज “यं' का मानसिक जाप करते हुए इस चक्र का ध्यान करने से वाक् अधिप्तिय, अर्थात कवित्व शक्ति प्राप्त हो जाती है। ध्यान अधिक करने से 10 प्रकार के नाद तथा श्रुतिगोचर होने लगते है।

5. विशुद्धि चक्र- पांचवा चक्र विशुद्धि चक्र हमारे शरीर में स्थित मेरूदण्ड में कण्ठ के पीछे स्थित है। इसका शाब्दिक अर्थ 'वि' अर्थात विशेष, जिसकी तुलना नहीं हो सकती है और शुद्धि का अर्थ शुद्ध करने से लिया जाता है। विशुद्धि चक्र शरीर में विषाक्त तत्वों को फैलने से रोकता है। इसका प्रभाव स्वर यंत्र, गले, टॉसिल, आदि ग्रंथियों पर पड़ता है।
इसकी आकृति नील आभा युक्त खिले हुए कमल के समान है। इसमें 16 दल होते है। सोहल दलों पर सोलह मात्रिका वर्ण हैं- अं, आं, इं, ई, उं, ऊं, ऋं, ऋ, लृं, एं, ओं, औं, आं, अः। इन सोलह दलों पर आकाश तत्व की वृत्तियों है जो सोलह है- निषाद, ऋषभ, गान्धार, षडश, मध्यम, धौवत, पंचम ये सात स्वर रूप में है और अं, हूं, फट, वषट, स्वधा, स्वाहा स्वर रूप में है और अमृत यह बिना स्वर के हैं। आकाश तत्व का 'हं' बीज है। इस तत्व की गति गम्भीर होती है। आकाश तत्व का गुण 'शब्द' होता है। जो ऊपर की ओर गति करने वाला है। आकाश तत्वबीज का वाहन हस्ती जिसके ऊपर प्रकाश देवता है। इसके अधिपति देवता पंच मुख वाले सदाशिव हैं जो अपनी शक्ति चर्तुभुज, 'शाकिनी' के साथ विराजमान है। इसका यन्त्र पूर्णचन्द्रमा के वृत्ताकार आकाश मण्डल के समान है।

विशुद्धि चक्र के ध्यान का फल- आकाश तत्व का बीज 'हं' का जाप करते हुए विशुद्धि चक्र का ध्यान करना चाहिए। विशुद्धि चक्र में ध्यान करने से भूत, वर्तमान और भविष्य इन तीनों कालों का ज्ञान हो जाता है। साधक ज्ञानवान, तेजस्वी, शांत चित्त और दीर्घजीवी हो जाता है। 

6. आज्ञा चक्र- छटा चक्र आज्ञाचक्र कहलाता है। आज्ञा चक्र हमारे शरीर में मेरूदण्ड के उपरी छोर पर भूमध्य के पीछे स्थित होता है। इसका सम्बन्ध पिनियल ग्रन्थि से होता है। इसी को तीसरा नेत्र भी कहा जाता है इस चक्र की आकृति दो दलों वाला कमल के समान होती है। दोनों दलों पर मात्रिका वर्ण हं' और “क्ष' है। इनकी वृत्तियाँ भी दो ही है प्रवृत्ति और अहंमन्यता। इसका तत्व महत तत्व है। इसके तत्वबीज ऊँ है और तत्व बीज की गति नाद है। तत्वबीज के वाहन नाद पर लिंग देवता विराजमान हैं। इसका अधिपति देवता ज्ञान प्रदाता शिव है जो कि चतुर्भुजा षड़ानना (छ: मुखवली) 'हाकिनी' शक्ति के साथ शोभायमान है। इसका यन्त्र लिंगाकार के समान वर्तुल है।

आज्ञा चक्र के ध्यान का फल- इस चक्र का ध्यान, ऊँ बीज मंत्र का मानसिक जप करने से प्रतिभ चक्षु या दिव्य नेत्र खुल जाते है योगी को दिव्य-दृष्टि मिलती है। दिव्य योग दृष्टि प्राप्त योगी को विश्व-ब्रहमाण्ड में हर तत्व का ज्ञान हो जाता है। उससे कोई भी तत्व अज्ञात नहीं रहता है।

7. सहस्रार चक्र- सबसे ऊपर और सबके अन्त में यह सहस्रार चक्र, सहस्त्र दल कमल के रूप में विद्यमान है। यह सहस्रार चक्र के सूक्ष्म स्वरूप का स्थूल रूप मात्र है। इसका स्थान, जो सभी शक्तियों का केन्द्र स्थान है ब्रह्मताल या ब्रहमरंध के ऊपर मस्तिष्क में है। विभिन्न प्रकार के रंगों के प्रकाश से युक्त हजार दलों वाले कमल के समान इसकी आकृति है। वह कमल एक छत्री के समान अर्ध: मुख विकसित है। इन सहस्र दलों पर मत्रिका समूह अं से लेकर 'क्ष' विद्यमान है। जिसमें समस्त स्वर और व्यंजन वर्ण समूह विद्यमान है। इसका तत्व तत्वातीत है। बिंदु तत्वबीज का वाहन है तथा अधिपति देवता परब्रह्म (शिव) हैं। जो अपनी महाशक्ति के साथ शोभा पा रहे हैं। इसका लोक अन्तिम सत्य लोक है। इससे ऊपर कोई लोक नहीं है।
इस सहस्रार चक्र का यन्त्र शुभ आभा युक्त पूर्ण चन्द्रमा के समान वर्तुल है। वही पर इस यन्त्र में कुण्डलिनी शक्ति उपस्थित होकर सदैव परमात्मा के साथ युग्म रूप में पर महाशक्ति से मिलन होता है। यहां पर शिव और शक्ति का मिलन होता है।

कुण्डलिनी शक्ति परम शिव के साथ लीन होने के साथ ही विभिन्न चक्रों की शक्तियों अहंकार, चित्त, बुद्धि तथा मन के साथ सम्पूर्ण रूप से परमात्मा में विलीन हो जाती है तत्पश्चात साधक को इस जगत का भी भान नहीं रहता और उसे असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति हो जाती है। इसका फल अमरत्व या अमरपद की प्राप्ति होती है।


ईश्वर का स्वरूप

पुरूष एवं प्रकृति की अवधारणा

अष्टांग योग

Comments

Popular posts from this blog

MCQs for UGC NET YOGA (Yoga Upanishads)

1. "योगचूड़ामणि उपनिषद" में कौन-सा मार्ग मोक्ष का साधक बताया गया है? A) भक्तिमार्ग B) ध्यानमार्ग C) कर्ममार्ग D) ज्ञानमार्ग ANSWER= (B) ध्यानमार्ग Check Answer   2. "नादबिंदु उपनिषद" में किस साधना का वर्णन किया गया है? A) ध्यान साधना B) मंत्र साधना C) नादयोग साधना D) प्राणायाम साधना ANSWER= (C) नादयोग साधना Check Answer   3. "योगशिखा उपनिषद" में मोक्ष प्राप्ति का मुख्य साधन क्या बताया गया है? A) योग B) ध्यान C) भक्ति D) ज्ञान ANSWER= (A) योग Check Answer   4. "अमृतनाद उपनिषद" में कौन-सी शक्ति का वर्णन किया गया है? A) प्राण शक्ति B) मंत्र शक्ति C) कुण्डलिनी शक्ति D) चित्त शक्ति ANSWER= (C) कुण्डलिनी शक्ति Check Answer   5. "ध्यानबिंदु उपनिषद" में ध्यान का क...

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ आधार (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार आधार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार (12) भ्रूमध्य आधार (13) नासिका आधार (14) नासामूल कपाट आधार (15) ललाट आधार (16) ब्रहमरंध्र आधार सिद्ध...

UGC NET YOGA Upanishads MCQs

1. "योगकुण्डलिनी उपनिषद" में कौन-सी चक्र प्रणाली का वर्णन किया गया है? A) त्रिचक्र प्रणाली B) पंचचक्र प्रणाली C) सप्तचक्र प्रणाली D) दशचक्र प्रणाली ANSWER= (C) सप्तचक्र प्रणाली Check Answer   2. "अमृतबिंदु उपनिषद" में किसका अधिक महत्व बताया गया है? A) आसन की साधना B) ज्ञान की साधना C) तपस्या की साधना D) प्राणायाम की साधना ANSWER= (B) ज्ञान की साधना Check Answer   3. "ध्यानबिंदु उपनिषद" के अनुसार ध्यान का मुख्य उद्देश्य क्या है? A) शारीरिक शक्ति बढ़ाना B) सांसारिक सुख प्राप्त करना C) मानसिक शांति प्राप्त करना D) आत्म-साक्षात्कार ANSWER= (D) आत्म-साक्षात्कार Check Answer   4. "योगतत्त्व उपनिषद" के अनुसार योगी को कौन-सा गुण धारण करना चाहिए? A) सत्य और संयम B) अहंकार C) क्रोध और द्वेष D) लोभ और मोह ...

हठयोग प्रदीपिका का सामान्य परिचय

हठयोग प्रदीपिका ग्रन्थ के रचयिता स्वामी स्वात्माराम योगी हैँ। इन्होंने हठयोग के चार अंगो का मुख्य रूप से वर्णन किया है तथा इन्ही को चार अध्यायों मे बाँटा गया है। स्वामी स्वात्माराम योगी द्वारा बताए गए योग के चार अंग इस प्रकार है । 1. आसन-  "हठस्थ प्रथमांगत्वादासनं पूर्वमुच्यतै"  कहकर योगी स्वात्माराम जी  ने प्रथम अंग के रुप में आसन का वर्णन किया है। इन आसनो का उद्देश्य स्थैर्य, आरोग्य तथा अंगलाघव बताया गया है   'कुर्यात्तदासनं स्थैर्यमारोग्यं चांगलाघवम् '।  ह.प्र. 1/17 आसनो के अभ्यास से साधक के शरीर मे स्थिरता आ जाती है। चंचलता समाप्त हो जाती हैं. लचीलापन आता है, आरोग्यता आ जाती है, शरीर हल्का हो जाता है 1 हठयोगप्रदीपिका में पन्द्रह आसनों का वर्णन किया गया है हठयोगप्रदीपिका में वर्णित 15 आसनों के नाम 1. स्वस्तिकासन , 2. गोमुखासन , 3. वीरासन , 4. कूर्मासन , 5. कुक्कुटासन . 6. उत्तानकूर्मासन , 7. धनुरासन , 8. मत्स्येन्द्रासन , 9. पश्चिमोत्तानासन , 10. मयूरासन , 11. शवासन , 12. सिद्धासन , 13. पद्मासन , 14. सिंहासन , 15. भद्रासना । 2. प्राणायाम- ...

हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध

  हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध हठयोग प्रदीपिका में मुद्राओं का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम जी ने कहा है महामुद्रा महाबन्धों महावेधश्च खेचरी।  उड़्डीयानं मूलबन्धस्ततो जालंधराभिध:। (हठयोगप्रदीपिका- 3/6 ) करणी विपरीताख्या बज़्रोली शक्तिचालनम्।  इदं हि मुद्रादश्क जरामरणनाशनम्।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/7) अर्थात महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयानबन्ध, मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, विपरीतकरणी, वज़्रोली और शक्तिचालनी ये दस मुद्रायें हैं। जो जरा (वृद्धा अवस्था) मरण (मृत्यु) का नाश करने वाली है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है।  1. महामुद्रा- महामुद्रा का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है- पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम्।  प्रसारितं पद कृत्या कराभ्यां धारयेदृढम्।।  कंठे बंधं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वतः।  यथा दण्डहतः सर्पों दंडाकारः प्रजायते  ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेतत् ।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/9,10)  अर्थात् बायें पैर को एड़ी को गुदा और उपस्थ के मध्य सीवन पर दृढ़ता से लगाकर दाहिने पैर को फैला कर रखें...

ज्ञानयोग - ज्ञानयोग के साधन - बहिरंग साधन , अन्तरंग साधन

  ज्ञान व विज्ञान की धारायें वेदों में व्याप्त है । वेद का अर्थ ज्ञान के रूप मे लेते है ‘ज्ञान’ अर्थात जिससे व्यष्टि व समष्टि के वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। ज्ञान, विद् धातु से व्युत्पन्न शब्द है जिसका अर्थ किसी भी विषय, पदार्थ आदि को जानना या अनुभव करना होता है। ज्ञान की विशेषता व महत्त्व के विषय में बतलाते हुए कहा गया है "ज्ञानाग्नि सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा" अर्थात जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि ईंधन को जलाकर भस्म कर देती है उसी प्रकार ज्ञान रुपी अग्नि कर्म रूपी ईंधन को भस्म कर देती है। ज्ञानयोग साधना पद्धति, ज्ञान पर आधारित होती है इसीलिए इसको ज्ञानयोग की संज्ञा दी गयी है। ज्ञानयोग पद्धति मे योग का बौद्धिक और दार्शनिक पक्ष समाहित होता है। ज्ञानयोग 'ब्रहासत्यं जगतमिथ्या' के सिद्धान्त के आधार पर संसार में रह कर भी अपने ब्रह्मभाव को जानने का प्रयास करने की विधि है। जब साधक स्वयं को ईश्वर (ब्रहा) के रूप ने जान लेता है 'अहं ब्रह्मास्मि’ का बोध होते ही वह बंधनमुक्त हो जाता है। उपनिषद मुख्यतया इसी ज्ञान का स्रोत हैं। ज्ञानयोग साधना में अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त ...

MCQs on “Yoga Upanishads” in Hindi for UGC NET Yoga Paper-2

1. "योगतत्त्व उपनिषद" का मुख्य विषय क्या है? A) हठयोग की साधना B) राजयोग का सिद्धांत C) कर्मयोग का महत्व D) भक्ति योग का वर्णन ANSWER= (A) हठयोग की साधना Check Answer   2. "अमृतनाद उपनिषद" में किस योग पद्धति का वर्णन किया गया है? A) कर्मयोग B) मंत्रयोग C) लययोग D) कुण्डलिनी योग ANSWER= (D) कुण्डलिनी योग Check Answer   3. "योगछूड़ामणि उपनिषद" में मुख्य रूप से किस विषय पर प्रकाश डाला गया है? A) प्राणायाम के भेद B) मोक्ष प्राप्ति का मार्ग C) ध्यान और समाधि D) योगासनों का महत्व ANSWER= (C) ध्यान और समाधि Check Answer   4. "ध्यानबिंदु उपनिषद" में किस ध्यान पद्धति का उल्लेख है? A) त्राटक ध्यान B) अनाहत ध्यान C) सगुण ध्यान D) निर्गुण ध्यान ANSWER= (D) निर्गुण ध्यान Check Answer ...

Information and Communication Technology विषय पर MCQs (Set-3)

  1. "HTTPS" में "P" का अर्थ क्या है? A) Process B) Packet C) Protocol D) Program ANSWER= (C) Protocol Check Answer   2. कौन-सा उपकरण 'डेटा' को डिजिटल रूप में परिवर्तित करता है? A) हब B) मॉडेम C) राउटर D) स्विच ANSWER= (B) मॉडेम Check Answer   3. किस प्रोटोकॉल का उपयोग 'ईमेल' भेजने के लिए किया जाता है? A) SMTP B) HTTP C) FTP D) POP3 ANSWER= (A) SMTP Check Answer   4. 'क्लाउड स्टोरेज' सेवा का एक उदाहरण क्या है? A) Paint B) Notepad C) MS Word D) Google Drive ANSWER= (D) Google Drive Check Answer   5. 'Firewall' का मुख्य कार्य क्या है? A) फाइल्स को एनक्रिप्ट करना B) डेटा को बैकअप करना C) नेटवर्क को सुरक्षित करना D) वायरस को स्कैन करना ANSWER= (C) नेटवर्क को सुरक्षित करना Check Answer   6. 'VPN' का पू...