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Yoga Multiple Choice Questions Answers in Hindi for All yoga Exam

Yoga MCQ with Answers in Hindi 

 1. "पतंजलि रहस्य" पाठ के लेखक कौन हैं?
A. स्वामी शिवानंद
B. स्वामी विवेकानंद
C. आचार्य शंकर
D. राघवानंद सरस्वती 

2. 'संयम' का वर्णन 'पतंजलि योग सूत्र' के किस अध्याय में किया गया है?
A. साधनापाद
B. समाधिपाद
C. विभूतिपाद
D. कैवल्यपाद 

3. निम्नलिखित में से कौन एक प्रमाण वृत्ति है?
A. प्रत्यक्ष
B. अनुमन
C. आगम
D. उपरोक्त सभी

4. किस अवस्था में व्यक्ति सुस्ती, अवसाद और नींद से प्रभावित होता है?
A. विक्षिप्तवस्था B. निंद्रावस्था
C. क्षिप्तावस्था  D. मूढावस्था

5. महर्षि पतंजलि के अनुसार पांचवीं चित्तवृत्ति कौन सी है?
A. विकल्प B. निंद्रा C. स्मृति D. विपर्य

6. कौन सी वृत्ति झूठी धारणा दर्शाती है?
A. प्रमाणवृत्ति B. निंद्रावृत्ति
C. विकल्पवृत्ति D. विपर्यवृत्ति

7. योग-अंतराय क्या है?
A. सफलता के तत्व
B. विफलता के तत्व
C. योग की ऊपरी अवस्था
D. योग की निम्न अवस्था

8. 'पतंजलि योग सूत्र' के अनुसार कुल कितनी चित्तवृत्तियाँ हैं?
A- 4, B- 5, C- 6, D-  7

9. महर्षि पतंजलि को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
A. अहिपति B. शेष अवतार
C. नागनाथ D. उपरोक्त सभी

10. निम्नलिखित में से कौन कलेश नहीं है?
A. अस्मिता B. विकल्प
C. अभिनिवेश D. राग

11. महर्षि पतंजलि के अनुसार कृष्ण कर्म हैं?
A. अच्छे कर्म B. बुरे कर्म
C. श्रद्धा कर्म D. पुण्य कर्म

12. महर्षि पतंजलि के अनुसार योगियों द्वारा किए गए कर्मों को कहा जाता है:
A. शुक्ल-कृष्ण कर्म
B. आशुक्ल-अकृष्ण कर्म:
C. शुक्ल कर्म
D. कृष्ण कर्म

13. सम्प्रज्ञात समाधि को  ……….. समाधि के नाम से भी जाना जाता है।
A. सबीज B. सविचार C. निर्बीज D. निर्विचार

14. किस प्रकार की समाधि में आत्मा अपने वास्तविक रूप को पहचानती है?
A. असंप्रज्ञात
B. संप्रज्ञात
C. नाद योग समाधि
D. लय योग समाधि

15. किस प्रकार की समाधि में विषय का वास्तविक ज्ञान रहता है?
A. संप्रज्ञात
B. असमप्रज्ञाता
C. उपरोक्त दोनों
D. उपरोक्त में से कोई नहीं

16. 'पतंजलि योग सूत्र' के किस पाद में समाधि के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या की गई है?
A. समाधि पाद
B. साधन पाद
C. विभूति पाद
D. कैवल्य पाद

17. राग-द्वेश चित्त की किस अवस्था को जन्म देता है?
A. मूढावस्था
B. क्षिप्तावस्था
C. विक्षिप्तावस्था
D. निरुद्धावस्था

18. चित्त की किस अवस्था में रजस गुण प्रबल होता है?
A. विक्षिप्तावस्था
B. मूढावस्था
C. क्षिप्तावस्था
D. निरुद्धवस्था

19. चित्त की किस अवस्था में सत्वगुण प्रबल होता है?
A. मूढावस्था
B. क्षिप्तावस्था
C. विक्षिप्तवस्था
D. निरुद्धवस्था

20. चित्त की किस अवस्था में तमस्गुण प्रबल होता है?
A. मूढावस्था
B. क्षिप्तावस्था
C. विक्षिप्तावस्था
D. निरुद्धवस्था

21. किस अवस्था को सम्प्रज्ञाता समाधि के नाम से जाना जाता है?
A. निरुद्धवस्था
B. एकाग्रावस्था
C. विक्षिप्तावस्था
D. उपरोक्त में से कोई नहीं

22. निम्नलिखित में से कौन सी समाधि एकानुगत है?
A. आनंदानुगत
B. विचारानुगत
C. अस्मितानुगत
D. वितर्कानुगत

23. निम्नलिखित में से कौन सी समाधि त्रियकनुगत है?
A. असमप्रज्ञाता
B. विचारानुगत
C. भवप्रत्यय
D. वितर्कानुगत

24. निम्नलिखित में से कौन एक वृत्ति नहीं है?
A. प्रमाण B. विकल्प
C. अभिनिवेश D. स्मृति

25. अभिनिवेश शब्द का अर्थ क्या है?
A. दुर्घटना का भय B. मृत्यु का भय
C. रोग का भय      D. क्लेश का भय


Answer-  1- D, 2- C, 3- D,  4-D, 5-C, 6-D, 7-B, 8-B, 9-D, 10-B, 11-B, 12-B, 13-A, 14-A, 15-A, 16-D, 17-B, 18-C, 19-C,  20-A, 21- B, 22-C, 23-B, 24-C, 25-B

 To be Continued...

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चित्त विक्षेपों को ही योगान्तराय ' कहते है जो चित्त को विक्षिप्त करके उसकी एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं उन्हें योगान्तराय अथवा योग के विध्न कहा जाता।  'योगस्य अन्तः मध्ये आयान्ति ते अन्तरायाः'।  ये योग के मध्य में आते हैं इसलिये इन्हें योगान्तराय कहा जाता है। विघ्नों से व्यथित होकर योग साधक साधना को बीच में ही छोड़कर चल देते हैं। विध्न आयें ही नहीं अथवा यदि आ जायें तो उनको सहने की शक्ति चित्त में आ जाये, ऐसी दया ईश्वर ही कर सकता है। यह तो सम्भव नहीं कि विध्न न आयें। “श्रेयांसि बहुविध्नानि' शुभकार्यों में विध्न आया ही करते हैं। उनसे टकराने का साहस योगसाधक में होना चाहिए। ईश्वर की अनुकम्पा से यह सम्भव होता है।  व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः (योगसूत्र - 1/30) योगसूत्र के अनुसार चित्त विक्षेपों  या अन्तरायों की संख्या नौ हैं- व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति, भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमिकत्व और अनवस्थितत्व। उक्त नौ अन्तराय ही चित्त को विक्षिप्त करते हैं। अतः ये योगविरोधी हैं इन्हें योग के मल भी

योग आसनों का वर्गीकरण एवं योग आसनों के सिद्धान्त

योग आसनों का वर्गीकरण (Classification of Yogaasanas) आसनों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है (1) ध्यानात्मक आसन- ये वें आसन है जिनमें बैठकर पूजा पाठ, ध्यान आदि आध्यात्मिक क्रियायें की जाती है। इन आसनों में पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन आदि प्रमुख है। (2) व्यायामात्मक आसन- ये वे आसन हैं जिनके अभ्यास से शरीर का व्यायाम तथा संवर्धन होता है। इसीलिए इनको शरीर संवर्धनात्मक आसन भी कहा जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य के संरक्षण तथा रोगों की चिकित्सा में भी इन आसनों का महत्व है। इन आसनों में सूर्य नमस्कार, ताडासन,  हस्तोत्तानासन, त्रिकोणासन, कटिचक्रासन आदि प्रमुख है। (3) विश्रामात्मक आसन- शारीरिक व मानसिक थकान को दूर करने के लिए जिन आसनों का अभ्यास किया जाता है, उन्हें विश्रामात्मक आसन कहा जाता है। इन आसनों के अन्तर्गत शवासन, मकरासन, शशांकासन, बालासन आदि प्रमुख है। इनके अभ्यास से शारीरिक थकान दूर होकर साधक को नवीन स्फूर्ति प्राप्त होती है। व्यायामात्मक आसनों के द्वारा थकान उत्पन्न होने पर विश्रामात्मक आसनों का अभ्यास थकान को दूर करके ताजगी

हठयोग का अर्थ , परिभाषा, उद्देश्य

  हठयोग का अर्थ भारतीय चिन्तन में योग मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है, योग की विविध परम्पराओं (ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, हठयोग) इत्यादि का अन्तिम लक्ष्य भी मोक्ष (समाधि) की प्राप्ति ही है। हठयोग के साधनों के माध्यम से वर्तमान में व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ तो करता ही है पर इसके आध्यात्मिक लाभ भी निश्चित रूप से व्यक्ति को मिलते है।  हठयोग- नाम से यह प्रतीत होता है कि यह क्रिया हठ- पूर्वक की जाने वाली है। परन्तु ऐसा नही है अगर हठयोग की क्रिया एक उचित मार्गदर्शन में की जाये तो साधक सहजतापूर्वक इसे कर सकता है। इसके विपरित अगर व्यक्ति बिना मार्गदर्शन के करता है तो इस साधना के विपरित परिणाम भी दिखते है। वास्तव में यह सच है कि हठयोग की क्रियाये कठिन कही जा सकती है जिसके लिए निरन्तरता और दृठता आवश्यक है प्रारम्भ में साधक हठयोग की क्रिया के अभ्यास को देखकर जल्दी करने को तैयार नहीं होता इसलिए एक सहनशील, परिश्रमी और तपस्वी व्यक्ति ही इस साधना को कर सकता है।  संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ में हठयोग शब्द को दो अक्षरों में विभाजित किया है।  1. ह -अर्थात हकार  2. ठ -अर्थात ठकार हकार - का अर्थ

कठोपनिषद

कठोपनिषद (Kathopanishad) - यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत आता है। इसमें दो अध्याय हैं जिनमें 3-3 वल्लियाँ हैं। पद्यात्मक भाषा शैली में है। मुख्य विषय- योग की परिभाषा, नचिकेता - यम के बीच संवाद, आत्मा की प्रकृति, आत्मा का बोध, कठोपनिषद में योग की परिभाषा :- प्राण, मन व इन्दियों का एक हो जाना, एकाग्रावस्था को प्राप्त कर लेना, बाह्य विषयों से विमुख होकर इन्द्रियों का मन में और मन का आत्मा मे लग जाना, प्राण का निश्चल हो जाना योग है। इन्द्रियों की स्थिर धारणा अवस्था ही योग है। इन्द्रियों की चंचलता को समाप्त कर उन्हें स्थिर करना ही योग है। कठोपनिषद में कहा गया है। “स्थिराम इन्द्रिय धारणाम्‌” .  नचिकेता-यम के बीच संवाद (कहानी) - नचिकेता पुत्र वाजश्रवा एक बार वाजश्रवा किसी को गाय दान दे रहे थे, वो गाय बिना दूध वाली थी, तब नचिकेता ( वाजश्रवा के पुत्र ) ने टोका कि दान में तो अपनी प्रिय वस्तु देते हैं आप ये बिना दूध देने वाली गाय क्यो दान में दे रहे है। वाद विवाद में नचिकेता ने कहा आप मुझे किसे दान में देगे, तब पिता वाजश्रवा को गुस्सा आया और उसने नचिकेता को कहा कि तुम मेरे

प्राणायाम का अर्थ एवं परिभाषायें, प्राणायामों का वर्गीकरण

प्राणायाम का अर्थ- (Meaning of pranayama) प्राणायाम शब्द, प्राण तथा आयाम दो शब्दों के जोडने से बनता है। प्राण जीवनी शक्ति है और आयाम उसका ठहराव या पड़ाव है। हमारे श्वास प्रश्वास की अनैच्छिक क्रिया निरन्तर अनवरत से चल रही है। इस अनैच्छिक क्रिया को अपने वश में करके ऐच्छिक बना लेने पर श्वास का पूरक करके कुम्भक करना और फिर इच्छानुसार रेचक करना प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम शब्द दो शब्दों से बना है प्राण + आयाम। प्राण वायु का शुद्ध व सात्विक अंश है। अगर प्राण शब्द का विवेचन करे तो प्राण शब्द (प्र+अन+अच) का अर्थ गति, कम्पन, गमन, प्रकृष्टता आदि के रूप में ग्रहण किया जाता है।  छान्न्दोग्योपनिषद कहता है- 'प्राणो वा इदं सर्व भूतं॑ यदिदं किंच।' (3/15/4) प्राण वह तत्व है जिसके होने पर ही सबकी सत्ता है  'प्राणे सर्व प्रतिष्ठितम। (प्रश्नेपनिषद 2/6) तथा प्राण के वश में ही सम्पूर्ण जगत है  “प्राणस्वेदं वशे सर्वम।? (प्रश्नोे. -2/13)  अथर्वद में कहा गया है- प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे।  यो भूतः सर्वेश्वरो यस्मिन् सर्वप्रतिष्ठितम्।॥ (अथर्ववेद 11-4-1) अर्थात उस प्राण को नमस्कार है, जिसके

बंध एवं मुद्रा का अर्थ , परिभाषा, उद्देश्य

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