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ऐतरेयें उपनिषद

ऐतरेयें उपनिषद (Aitareya upnishada)

ऋग्वेदीय उपनिषद है। इस उपनिषद में तीन अध्याय हैं। पहले अध्याय को तीन, व दूसरे व तीसरे के 1-1 खंड हैं।
ब्रह्मा विद्या प्रधान उपनिषद है। इस उपनिषद में सृष्टि प्रलय चक्र वर्णन। सृष्टि के प्रारम्भ में केवल आत्मा ही था। कर्म व कर्म समुचित ज्ञान का वर्णन है। साधक के लिए ग्रहस्थ आश्रम बाधक बताया है

आत्मा की अवधारणा- (Concepts of Atama )

ऐतरेयें उपनिषद में प्रकृति, आत्मा, परमात्मा का वर्णन है। सृष्टि के आरंभ में आत्मा (परमात्मा) थे, उसमें सृष्टि की उत्पत्ति करने की इच्छा हुई फिर चार लोकों की उत्पत्ति हुई ये चार लोक हैं:-
अम्भ / अरमस  =  धौ (सूर्य) , मरीची = अंतरिक्ष  , सर  = पृथ्वी , आपस = पानी (जल)
केवल (ऐतरेय) उपनिषद के अनुसार विराट की उत्पत्ति जल से हुई। उस विराट पुरुष को तपाने से 8 लोकपाल की उत्पत्ति हुई। 8 लोकपाल भी जल से बने।
 8 लोकपाल
1. अग्नि      =  मुख
2. वायु         = प्राण (नासिका में)
3. आदित्य   = आँखें
4. दिशाएँ     = कान
5. वनस्पति = त्वचा
6. चंद्रमा      = मन (हृदय में मन बनकर)
7. मृत्यु        = अपान वायु बनकर नाभि में
8. जल          = वीर्य बनकर इन्द्रियों में

 इन 8 लोकपालों के रहने का स्थान “पुरुष” में है। इन लोकपालों की भूख-प्यास शान्त करने के लिए  'अन्न' की उत्पत्ति की। अन्य को पकड़कर ' अपान ' प्राण लाया। आत्मा शरीर में 'विदृतिद्वार' से प्रवेश करता है और “नान्दान” स्थान पर रहता है।
आत्मा- चार लोक - 8 लोकपाल-  अन्न - अपान प्राण

ब्रह्माण्ड और ब्रह्मा की अवधारणा- 

सृष्टि के आरम्भ में केवल आत्मा था जिससे चार लोकों की रचना की :-
i. अम्भ     =  (धौ) सूर्य
ii. मरीची   =  अंतरिक्ष
iii. मर       =  पृथ्वी
iv. आपस्‌   = पानी (जल)

परमात्मा ने इन लोकों के लिए 8 लोकपाल यानी पुरुष के रूप में रचना की। जल से पुरुष की उत्पत्ति हुई।
आत्मज्ञान के लिए वैराग्य की सिद्धि के लिए अवस्थाओं अवस्थाएँ।
जीव के तीन जन्मों का वर्णन :-
   i. वीर्य रूप में माँ की कोख में
   ii. बालरूप में
   iii. पिता की मृत्यु होकर पुनः जन्म लेना।
वामदेव ऋषि के गर्भ में ही अनुभव बताया जाना। आत्मज्ञान परमानन्द का एकमात्र साधन।
विराट पुरुष की रचना। अन्न की उत्पत्ति जल से। शरीर का आत्मा द्वारा ग्रहण करना। सृष्टि प्रज्ञान में (विशेष प्रकार का ज्ञान) में प्रतिष्ठित हैं। परमात्मा में । यह सम्पूर्ण 4 लोक प्रज्ञा नेत्र है। (ज्ञान के) । प्रथम अध्याय में सृष्टि की उत्पत्ति, मन, अन्न, आत्मा आदि का वर्णन हैं। दूसरे अध्याय में - 3 जन्मों की चर्चा। वीर्य स्थापना माँ के गर्भ में जन्म होना। दोबारा उत्पन्न होना।
तीसरे अध्याय में - 'परमात्मा' का वर्णन है। (4 लोक है और 8 लोकपाल है) 

योगबीज

भक्तियोग, नवधा भक्ति

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