Yoga Beej for UGC NET Yoga Exam
योगबीज
योगबीज ग्रंथ भगवान शिव के द्वारा कहा गया यह है, यह हठ योग परंपरा का पुरातन ग्रंथ है, योग के एक बीज के रूप में इस ग्रंथ को माना जाता है। भगवान शिव एवं माता पार्वती जी के संवाद रूप इस ग्रंथ में माता पार्वती प्रश्न करती हैं एवं भगवान शिव उनका उतर देते हैं। योगबीज में कुल 182 श्लोक है (कुछ पुस्तक में 190 भी लिखा हुआ प्राप्त होता है, इस ग्रन्थ में कोई भी अध्याय नहीं है। योगबीज के रचनाकार भगवान शिव एवं श्रोता माता पार्वती है। माता पार्वती जी को सुरेश्वरि भी योग बीज में कहा गया है। योगबीज में माता पार्वती मुख्य रूप से 12 प्रश्न करती है।
योग बीज में सबसे प्रथम श्लोक में आदिनाथ शिव को प्रणाम किया गया है तथा इन्हे वृषभ नाथ भी इसमें कहा गया है। शिव को इसमें उत्पत्ति करता, पालक और संहार करता कहा गया है, और सभी क्सेशों को हरने बाला शिव को कहा गया है।
1- योगबीज के अनुसार - अहंकार के नष्ट होने से ही हमे मुक्ति (मोक्ष) की प्राप्ति होती है
2- योगबीज के अनुसार 5 प्राण होते है (लेकिन इसमें 5 प्राण के नाम नहीं बताए गए है।)
3- योगबीज के अनुसार चित्त की शुद्धि प्राण से होती है, प्राण का अर्थ यहां प्राणायाम से लिया गया है।
4- योगबीज में नाड़ी शुद्धि सबसे ज्यादा उपयोगी बताई गई है।
5- योगबीज के अनुसार नाड़ी शुद्धि से ही पूरे शरीर की शुद्धि होती है, निर्मलता आती है, और शरीर आकाश कि तरह निर्मल और पवित्र बनता है।
6- योगबीज में मुख्य रूप से एक ही आसन का वर्णन किया गया है- जिसका नाम वज्रासना है। योगबीज में इसे सिद्धासन भी कहा गया है। वज़ासन में बैठकर ही प्राणायाम की साधना करने की सलाह योगबीज में दी गई है। योग बीज में भस्त्रिका प्राणायाम को भस्त्री कहा गया है
7- योगबीज के अनुसार योग की परिभाषा है- प्राण और अपान, चंद्र और सूर्य, रज और वीर्य, जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही योग है। योगबीज ग्रंथ में सूत्र 83 और 84 में योग की परिभाषा दी गई है।
8- योग करने से वेष्टा नाम्बर फल की प्राप्ति होती है, वेष्टा नाम्बर फल की प्राप्ति गुरु की कृपा से होती है, वेष्टा नाम्बर वस्त्र धवल रंग का होता है, वेष्टा नाम्बर वस्त्र की लंबाई 12 अंगुल तथा चौड़ाई 4 अंगुल बताई गई है।
9- योगबीज नाथ सम्प्रदाय से संबंधित ग्रंथ है, नाथ मार्ग को सिद्धि मार्ग भी कहा गया है।
10- योगबीज ग्रंथ को प्रकाश में लाने का कार्य मत्स्येंद्रनाथ जी के शिष्य गुरु गोरक्षनाथ जी ने किया था।
11- योग बीज में दो प्रकार के कुंभक की बात की गई है- केवल कुंभक, सहित कुंभक, योगबीज में कुम्भक को प्राणायाम भी कहा गया है, योगबीज में कहा गया है कि साधक को केवल कुम्भक की सिद्धि के लिए प्रयास करना चहिए, यहां पर केवल कुम्भक को श्रेष्ठ माना गया है। केवल कुम्भक में 4 प्रकार के प्राणायाम बताए गए है- सूर्यमेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्री। योगबीज में 4 प्रकार के प्राणायाम में 3 बंध को लगाने की बात कही गई है। सूर्यभेदी प्राणायाम- पेट, वात, एवं कण्ठ के रोग को समाप्त करता है। उज्जायी प्राणायाम- कंठ, जठराग्नि, एवं सिर से संबंधित रोग को समाप्त करता है। योगबीज में उज्जायी प्रणायाम के बारे में कहा गया है कि उज्जायी प्राणायाम को चलते, फिरते, उठते, बैठते कर सकते है। शीतली प्राणायाम- पित्त रोग को एवं ज्वार संबधी रोग को दूर करता है। भस्त्री प्राणायाम- वात , पित, एवं कफ से संबंधित दोषों को समाप्त करने का कार्य करता है , ब्रह्म, विष्णु और रूद्र ग्रंथियों का भेदन करता है, अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
12- योगबीज में 3 बन्धों का वर्णन मुख्यता मिलता है- उड़्डीयान बन्ध, जालंधर बन्ध और मूलबन्ध
13- योगबीज मेँ शक्तिचालन मुद्रा का वर्णन मिलता है परंतु इसकी विधि न्यौली क्रिया के समान बताई गई है। योगबीज के अनुसार शक्तिचालन करने से ऋजु भाव आता है
14- योगबीज में 3 ग्रंथि की बात कही गई है- ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि, रुद्र ग्रंथि
15- योगबीज में एकांत स्थान पर योग करने एवं लघु भोजन करने की बात कहीं गई है
16- सुषुम्ना (रीड की हड़डी) में 21 मनके (मणिया, नाड़ियां) बताई गई है, सुषुम्ना का विश्वधारणी नाम बताया गया है।
17- योगबीज में योग के 4 प्रकार का वर्णन किया गया है- मंत्र योग, हठयोग, लय योग, राजयोग। मंत्र योग- सोहम मंत्र बताया गया है। हठ योग- ह+ठ (सूर्य + चंद्र) नाड़ियो की एकता हठ योग है, इसकी सिद्धि से सभी प्रकार के दोषों से उत्पन्न होने वाली जड़ता नष्ट हो जाती है। लय योग- क्षेत्र+ क्षेत्रज्ञ (जीव + परमात्मा) दोनों का एक हो जाना लय योग है। राज योग- जिस योग साधना दवारा रज और रेतस (वीर्य) का एकीभाव हो वह राजयोग है।
18- योगबीज ग्रंथ काकमत और मर्कटमत का वर्णन मिलता है- काकमत- यदि- साधक की किसी कारण वश मृत्यु हो जाए तब अगले जन्म में जहाँ से साधना समाप्त हुई थी वही से प्रारंभ ही जाती है। मर्कटमत- जैसे- एक बंदर वृक्ष से फल प्राप्त करने लिए मूल (तने) से चढ़ना शुरू करता है और धीरे धीरे एक से दूसरी टहनी पर जाता हुआ फल को प्राप्त करता है ठीक उसी प्रकार साधक विभिन्न क्रियाओ व चरणों से गुजरता हुआ मोक्ष की प्राप्ति करता है।
19- मोक्ष प्राप्ति के लिए प्राणायाम साधना सबसे महत्वपूर्ण है इसे ही योगबीज में पश्चिम मार्ग कहा गया है
20- योगबीज में 2 प्रकार की सिद्धियों की बात की गई है- कल्पित सिद्धि, अकल्पित सिद्धि
कल्पित सिदधि- कल्पित सिद्धि को अस्थाई बताया गया है, रस रसायनों के प्रयोग से , औषधि सेवन से , समय विशेष में साधना करने से, तीर्थ स्थानों में तपस्या से कल्पित सिद्धि प्राप्त होती है।
अकल्पित सिद्धि- यह स्थाई होती है, कल्पित के साधनों से रहित निष्ठा पूर्वक साधना से व शिव को समर्पित होकर कार्य करने से तथा योग मार्ग पर चलने से यह सिद्धि प्राप्त होती है।
21- माता पार्वती प्रश्न करती है को कौन परमपद कैवल्य को प्राप्त नही कर सकता तब भगवान शिव कहते है कि जो सैकड़ो शास्त्र पड़ता है, द्वन्दों में फसा रहता है, अपनी बुद्धि के इस्तेमाल से इसी कर्म में लगा रहता है तथा शास्त्रार्थ आदि में फस जाता है वह कैवल्य प्राप्त नहीं कर सकता।
22- योगबीज के अनुसार परमपद कैवल्य का स्वरूप- परम पद कैवल्य का स्वरूप आत्म प्रकाश है अवचनीय है, निष्कल, निर्मल, शांत, निरामय, पाप पुण्य से मुक्त है।
23- योगबीज के अनुसार रस, रक्त, मांस , मेध, अस्थि, मज्जा, शुक्र, सत्व, रजस, तमस इन गुणों से मिलकर पिंड की उत्पत्ति होती है।
24- योगबीज में ज्ञान की तुलना तलवार से एवं योग साधना की तुलना पराक्रम से की गई है, दोनों ही एक दूसरे के बिना अधूरे है
24- योगबीज में पुनर्जन्म के बारे में कहा गया है कि मृत्यु के समय हम जो कुछ सोचते है उसी के अनुरूप हमे अगला जन्म प्राप्त होता है।
25- योगबीज के अनुसार योग सिद्धियों के परिणाम- व्याधियों का नाश हो जाता है, चोट आदि का प्रभाव नहीं पड़ता, सांसारिक चीजों से ऊपर उठ जाते है, योगी परम आकाश स्वरूप हो जाता है।
26- योगबीज के अनुसार आत्मा की उत्पत्ति अंहकार से होना बताई गई है।
27- कार्य एवं कारण सिद्धांत की चर्चा भी योगबीज़ में की गई है
28- ज्ञानी के 2 प्रकार योगबीज में बताए गए है- परिपक्व एवं अपरिपक्व
29- संसार के रोग बुढ़ापा आदि से कैसे निकल सकते है, पूर्ण सुख कैसे प्राप्त कर सकते है इस तरह का प्रश्न माता पार्वती करती है तब भगवान शिव कहते है कि नाथ मार्ग के द्वारा ही पूर्ण सुख प्राप्त कर सकते है।
30- परमात्मा का स्वरूप अखंड, द्वन्दों से रहित, कर्मों से रहित एवं अविनाशी बताया गया है । योगबीज में शुक्ल तथा कृष्ण दो कर्मों की बात की गई है
31- योगबीज के अनुसार मुक्ति की प्राप्ति ज्ञान और योग दोनों के माध्यम से बताई गई है।
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