Skip to main content

योगबीज

 Yoga Beej for UGC NET Yoga Exam

योगबीज

योगबीज ग्रंथ भगवान शिव के द्वारा कहा गया यह है, यह हठ योग परंपरा का पुरातन ग्रंथ है, योग के एक बीज के रूप में इस ग्रंथ को माना जाता है। भगवान शिव एवं माता पार्वती जी के संवाद रूप इस ग्रंथ में माता पार्वती प्रश्न करती हैं एवं भगवान शिव उनका उतर देते हैं। योगबीज में कुल 182 श्लोक है (कुछ पुस्तक में 190 भी लिखा हुआ प्राप्त होता है, इस ग्रन्थ में कोई भी अध्याय नहीं है। योगबीज के रचनाकार भगवान शिव एवं श्रोता माता पार्वती है। माता पार्वती जी को सुरेश्वरि भी योग बीज में कहा गया है। योगबीज में माता पार्वती मुख्य रूप से 12 प्रश्न करती है।

योग बीज में सबसे प्रथम श्लोक में आदिनाथ शिव को प्रणाम किया गया है तथा इन्हे वृषभ नाथ भी इसमें कहा गया है। शिव को इसमें उत्पत्ति करता, पालक और संहार करता कहा गया है, और सभी क्सेशों को हरने बाला शिव को कहा गया है।
1- योगबीज के अनुसार - अहंकार के नष्ट होने से ही हमे मुक्ति (मोक्ष) की प्राप्ति होती है
2- योगबीज के अनुसार 5 प्राण होते है  (लेकिन इसमें 5 प्राण के नाम नहीं बताए गए है।)
3- योगबीज के अनुसार चित्त की शुद्धि प्राण से होती है, प्राण का अर्थ यहां प्राणायाम से लिया गया है।
4- योगबीज में नाड़ी शुद्धि सबसे ज्यादा उपयोगी बताई गई है।
5- योगबीज के अनुसार नाड़ी शुद्धि से ही पूरे शरीर की शुद्धि होती है, निर्मलता आती है, और शरीर आकाश कि तरह निर्मल और पवित्र बनता है।
6- योगबीज में मुख्य रूप से एक ही आसन का वर्णन किया गया है- जिसका नाम वज्रासना है। योगबीज में  इसे सिद्धासन भी कहा गया है। वज़ासन में बैठकर ही प्राणायाम की साधना करने की सलाह योगबीज में दी गई है। योग बीज में भस्त्रिका प्राणायाम को भस्त्री कहा गया है
7- योगबीज के अनुसार योग की परिभाषा है- प्राण और अपान, चंद्र और सूर्य, रज और वीर्य, जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही योग है। योगबीज ग्रंथ में सूत्र 83 और 84 में योग की परिभाषा दी गई है।

8- योग करने से वेष्टा नाम्बर फल की प्राप्ति होती है, वेष्टा नाम्बर फल की प्राप्ति गुरु की कृपा से होती है, वेष्टा नाम्बर वस्त्र धवल रंग का होता है, वेष्टा नाम्बर वस्त्र की लंबाई 12 अंगुल तथा चौड़ाई 4 अंगुल बताई गई है।

9- योगबीज नाथ सम्प्रदाय से संबंधित ग्रंथ है, नाथ मार्ग को सिद्धि मार्ग भी कहा गया है।
10- योगबीज ग्रंथ को प्रकाश में लाने का कार्य मत्स्येंद्रनाथ जी के शिष्य गुरु गोरक्षनाथ जी ने किया था।
11- योग बीज में दो प्रकार के कुंभक की बात की गई है- केवल कुंभक, सहित कुंभक, योगबीज में कुम्भक को प्राणायाम भी कहा गया है, योगबीज में कहा गया है कि साधक को केवल कुम्भक की सिद्धि के लिए प्रयास करना चहिए, यहां पर केवल कुम्भक को श्रेष्ठ माना गया है। केवल कुम्भक में 4 प्रकार के प्राणायाम बताए गए है- सूर्यमेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्री। योगबीज में 4 प्रकार के प्राणायाम में 3 बंध को लगाने की बात कही गई है। सूर्यभेदी प्राणायाम- पेट, वात, एवं कण्ठ के रोग को समाप्त करता है। उज्जायी प्राणायाम- कंठ, जठराग्नि, एवं सिर से संबंधित रोग को समाप्त करता है। योगबीज में उज्जायी प्रणायाम के बारे में कहा गया है कि उज्जायी प्राणायाम को चलते, फिरते, उठते, बैठते कर सकते है। शीतली प्राणायाम- पित्त रोग को एवं ज्वार संबधी रोग को दूर करता है। भस्त्री प्राणायाम- वात , पित, एवं कफ से संबंधित दोषों को समाप्त करने का कार्य करता है , ब्रह्म, विष्णु और रूद्र ग्रंथियों का भेदन करता है, अनंत सुख की प्राप्ति होती है। 

12- योगबीज में 3 बन्धों का वर्णन मुख्यता मिलता है- उड़्डीयान बन्ध, जालंधर बन्ध और मूलबन्ध
13- योगबीज मेँ शक्तिचालन मुद्रा का वर्णन मिलता है परंतु इसकी विधि न्‍यौली क्रिया के समान बताई गई है। योगबीज के अनुसार शक्तिचालन करने से ऋजु भाव आता है
14- योगबीज में 3 ग्रंथि की बात कही गई है- ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि, रुद्र ग्रंथि
15- योगबीज में एकांत स्थान पर योग करने एवं लघु भोजन करने की बात कहीं गई है
16- सुषुम्ना (रीड की हड़डी) में 21 मनके (मणिया, नाड़ियां) बताई गई है, सुषुम्ना का विश्वधारणी नाम बताया गया है।
17- योगबीज में योग के 4 प्रकार का वर्णन किया गया है- मंत्र योग, हठयोग, लय योग, राजयोगमंत्र योग- सोहम मंत्र बताया गया है। हठ योग- ह+ठ (सूर्य + चंद्र) नाड़ियो की एकता हठ योग है, इसकी सिद्धि से सभी प्रकार के दोषों से उत्पन्‍न होने वाली जड़ता नष्ट हो जाती है। लय योग- क्षेत्र+ क्षेत्रज्ञ (जीव + परमात्मा) दोनों का एक हो जाना लय योग है। राज योग- जिस योग साधना दवारा रज और रेतस (वीर्य) का एकीभाव हो वह राजयोग है।

 18- योगबीज ग्रंथ काकमत और मर्कटमत का वर्णन मिलता है- काकमत- यदि- साधक की किसी कारण वश मृत्यु हो जाए तब अगले जन्म में जहाँ से साधना समाप्त हुई थी वही से प्रारंभ ही जाती है। मर्कटमत- जैसे- एक बंदर वृक्ष से फल प्राप्त करने लिए मूल (तने) से चढ़ना शुरू करता है और धीरे धीरे एक से दूसरी टहनी पर जाता हुआ फल को प्राप्त करता है ठीक उसी प्रकार साधक विभिन्न क्रियाओ व चरणों से गुजरता हुआ मोक्ष की प्राप्ति करता है।
19- मोक्ष प्राप्ति के लिए प्राणायाम साधना सबसे महत्वपूर्ण है इसे ही योगबीज में पश्चिम मार्ग कहा गया है
20- योगबीज में 2 प्रकार की सिद्धियों की बात की गई है- कल्पित सिद्धि, अकल्पित सिद्धि
कल्पित सिदधि- कल्पित सिद्धि को अस्थाई बताया गया है, रस रसायनों के प्रयोग से , औषधि सेवन से , समय विशेष में साधना करने से, तीर्थ स्थानों में तपस्या से कल्पित सिद्धि प्राप्त होती है।
अकल्पित सिद्धि- यह स्थाई होती है, कल्पित के साधनों से रहित निष्ठा पूर्वक साधना से व शिव को समर्पित होकर कार्य करने से तथा योग मार्ग पर चलने से यह सिद्धि प्राप्त होती है।

21- माता पार्वती प्रश्न करती है को कौन परमपद कैवल्य को प्राप्त नही कर सकता तब भगवान शिव कहते है कि जो सैकड़ो शास्त्र पड़ता है, द्वन्दों में फसा रहता है, अपनी बुद्धि के इस्तेमाल से इसी कर्म में लगा रहता है तथा शास्त्रार्थ आदि में फस जाता है वह कैवल्य प्राप्त नहीं कर सकता।
22- योगबीज के अनुसार परमपद कैवल्य का स्वरूप- परम पद कैवल्य का स्वरूप आत्म प्रकाश है  अवचनीय है, निष्कल, निर्मल, शांत, निरामय, पाप पुण्य से मुक्‍त है।
23- योगबीज के अनुसार रस, रक्‍त, मांस , मेध, अस्थि, मज्जा, शुक्र, सत्व, रजस, तमस इन गुणों से मिलकर पिंड की उत्पत्ति होती है।
24- योगबीज में ज्ञान की तुलना तलवार से एवं योग साधना की तुलना पराक्रम से की गई है, दोनों ही एक दूसरे के बिना अधूरे है
24- योगबीज में पुनर्जन्म के बारे में कहा गया है कि मृत्यु के समय हम जो कुछ सोचते है उसी के अनुरूप हमे अगला जन्‍म प्राप्त होता है।
25- योगबीज के अनुसार योग सिद्धियों के परिणाम- व्याधियों का नाश हो जाता है, चोट आदि का प्रभाव नहीं पड़ता, सांसारिक चीजों से ऊपर उठ जाते है, योगी परम आकाश स्वरूप हो जाता है।
26- योगबीज के अनुसार आत्मा की उत्पत्ति अंहकार से होना बताई गई है।
27- कार्य एवं कारण सिद्धांत की चर्चा भी योगबीज़ में की गई है
28- ज्ञानी के 2 प्रकार योगबीज में बताए गए है- परिपक्व एवं अपरिपक्व
29- संसार के रोग बुढ़ापा आदि से कैसे निकल सकते है, पूर्ण सुख कैसे प्राप्त कर सकते है इस तरह का प्रश्न माता पार्वती करती है तब भगवान शिव कहते है कि नाथ मार्ग के द्वारा ही पूर्ण सुख प्राप्त कर सकते है।
30- परमात्मा का स्वरूप अखंड, द्वन्दों से रहित, कर्मों से रहित एवं अविनाशी बताया गया है । योगबीज में शुक्ल तथा कृष्ण दो कर्मों की बात की गई है
31- योगबीज के अनुसार मुक्ति की प्राप्ति ज्ञान और योग दोनों के माध्यम से बताई गई है।

SSBYN Home

योग अध्ययन सामग्री

हठयोग

प्राकृतिक चिकित्सा


 

Comments

Popular posts from this blog

"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र

7 Chakras in Human Body हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है। 'चक्र' शब्द का अर्थ-  'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है। योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा ग...

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ आधार (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार आधार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार (12) भ्रूमध्य आधार (13) नासिका आधार (14) नासामूल कपाट आधार (15) ललाट आधार (16) ब्रहमरंध्र आधार सिद्ध...

हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध

  हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध हठयोग प्रदीपिका में मुद्राओं का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम जी ने कहा है महामुद्रा महाबन्धों महावेधश्च खेचरी।  उड़्डीयानं मूलबन्धस्ततो जालंधराभिध:। (हठयोगप्रदीपिका- 3/6 ) करणी विपरीताख्या बज़्रोली शक्तिचालनम्।  इदं हि मुद्रादश्क जरामरणनाशनम्।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/7) अर्थात महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयानबन्ध, मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, विपरीतकरणी, वज़्रोली और शक्तिचालनी ये दस मुद्रायें हैं। जो जरा (वृद्धा अवस्था) मरण (मृत्यु) का नाश करने वाली है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है।  1. महामुद्रा- महामुद्रा का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है- पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम्।  प्रसारितं पद कृत्या कराभ्यां धारयेदृढम्।।  कंठे बंधं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वतः।  यथा दण्डहतः सर्पों दंडाकारः प्रजायते  ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेतत् ।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/9,10)  अर्थात् बायें पैर को एड़ी को गुदा और उपस्थ के मध्य सीवन पर दृढ़ता से लगाकर दाहिने पैर को फैला कर रखें...

घेरण्ड संहिता के अनुसार ध्यान

घेरण्ड संहिता में वर्णित  “ध्यान“  घेरण्ड संहिता के छठे अध्याय में ध्यान को परिभाषित करते हुए महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि किसी विषय या वस्तु पर एकाग्रता या चिन्तन की क्रिया 'ध्यान' कहलाती है। जिस प्रकार हम अपने मन के सूक्ष्म अनुभवों को अन्‍तःचक्षु के सामने मन:दृष्टि के सामने स्पष्ट कर सके, यही ध्यान की स्थिति है। ध्यान साधक की कल्पना शक्ति पर भी निर्भर है। ध्यान अभ्यास नहीं है यह एक स्थिति हैं जो बिना किसी अवरोध के अनवरत चलती रहती है। जिस प्रकार तेल को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डालने पर बिना रूकावट के मोटी धारा निकलती है, बिना छलके एक समान स्तर से भरनी शुरू होती है यही ध्यान की स्थिति है। इस स्थिति में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं होती। महर्षि घेरण्ड ध्यान के प्रकारों का वर्णन छठे अध्याय के प्रथम सूत्र में करते हुए कहते हैं कि - स्थूलं ज्योतिस्थासूक्ष्मं ध्यानस्य त्रिविधं विदु: । स्थूलं मूर्तिमयं प्रोक्तं ज्योतिस्तेजोमयं तथा । सूक्ष्मं विन्दुमयं ब्रह्म कुण्डली परदेवता ।। (घेरण्ड संहिता  6/1) अर्थात्‌ ध्यान तीन प्रकार का है- स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान। स्थू...

MCQs for UGC NET YOGA (Yoga Upanishads)

1. "योगचूड़ामणि उपनिषद" में कौन-सा मार्ग मोक्ष का साधक बताया गया है? A) भक्तिमार्ग B) ध्यानमार्ग C) कर्ममार्ग D) ज्ञानमार्ग ANSWER= (B) ध्यानमार्ग Check Answer   2. "नादबिंदु उपनिषद" में किस साधना का वर्णन किया गया है? A) ध्यान साधना B) मंत्र साधना C) नादयोग साधना D) प्राणायाम साधना ANSWER= (C) नादयोग साधना Check Answer   3. "योगशिखा उपनिषद" में मोक्ष प्राप्ति का मुख्य साधन क्या बताया गया है? A) योग B) ध्यान C) भक्ति D) ज्ञान ANSWER= (A) योग Check Answer   4. "अमृतनाद उपनिषद" में कौन-सी शक्ति का वर्णन किया गया है? A) प्राण शक्ति B) मंत्र शक्ति C) कुण्डलिनी शक्ति D) चित्त शक्ति ANSWER= (C) कुण्डलिनी शक्ति Check Answer   5. "ध्यानबिंदु उपनिषद" में ध्यान का क...

MCQs on “Yoga Upanishads” in Hindi for UGC NET Yoga Paper-2

1. "योगतत्त्व उपनिषद" का मुख्य विषय क्या है? A) हठयोग की साधना B) राजयोग का सिद्धांत C) कर्मयोग का महत्व D) भक्ति योग का वर्णन ANSWER= (A) हठयोग की साधना Check Answer   2. "अमृतनाद उपनिषद" में किस योग पद्धति का वर्णन किया गया है? A) कर्मयोग B) मंत्रयोग C) लययोग D) कुण्डलिनी योग ANSWER= (D) कुण्डलिनी योग Check Answer   3. "योगछूड़ामणि उपनिषद" में मुख्य रूप से किस विषय पर प्रकाश डाला गया है? A) प्राणायाम के भेद B) मोक्ष प्राप्ति का मार्ग C) ध्यान और समाधि D) योगासनों का महत्व ANSWER= (C) ध्यान और समाधि Check Answer   4. "ध्यानबिंदु उपनिषद" में किस ध्यान पद्धति का उल्लेख है? A) त्राटक ध्यान B) अनाहत ध्यान C) सगुण ध्यान D) निर्गुण ध्यान ANSWER= (D) निर्गुण ध्यान Check Answer ...

UGC NET YOGA Upanishads MCQs

1. "योगकुण्डलिनी उपनिषद" में कौन-सी चक्र प्रणाली का वर्णन किया गया है? A) त्रिचक्र प्रणाली B) पंचचक्र प्रणाली C) सप्तचक्र प्रणाली D) दशचक्र प्रणाली ANSWER= (C) सप्तचक्र प्रणाली Check Answer   2. "अमृतबिंदु उपनिषद" में किसका अधिक महत्व बताया गया है? A) आसन की साधना B) ज्ञान की साधना C) तपस्या की साधना D) प्राणायाम की साधना ANSWER= (B) ज्ञान की साधना Check Answer   3. "ध्यानबिंदु उपनिषद" के अनुसार ध्यान का मुख्य उद्देश्य क्या है? A) शारीरिक शक्ति बढ़ाना B) सांसारिक सुख प्राप्त करना C) मानसिक शांति प्राप्त करना D) आत्म-साक्षात्कार ANSWER= (D) आत्म-साक्षात्कार Check Answer   4. "योगतत्त्व उपनिषद" के अनुसार योगी को कौन-सा गुण धारण करना चाहिए? A) सत्य और संयम B) अहंकार C) क्रोध और द्वेष D) लोभ और मोह ...

आसन का अर्थ एवं परिभाषायें, आसनो के उद्देश्य

आसन का अर्थ आसन शब्द के अनेक अर्थ है जैसे  बैठने का ढंग, शरीर के अंगों की एक विशेष स्थिति, ठहर जाना, शत्रु के विरुद्ध किसी स्थान पर डटे रहना, हाथी के शरीर का अगला भाग, घोड़े का कन्धा, आसन अर्थात जिसके ऊपर बैठा जाता है। संस्कृत व्याकरंण के अनुसार आसन शब्द अस धातु से बना है जिसके दो अर्थ होते है। 1. बैठने का स्थान : जैसे दरी, मृग छाल, कालीन, चादर  2. शारीरिक स्थिति : अर्थात शरीर के अंगों की स्थिति  आसन की परिभाषा हम जिस स्थिति में रहते है वह आसन उसी नाम से जाना जाता है। जैसे मुर्गे की स्थिति को कुक्कुटासन, मयूर की स्थिति को मयूरासन। आसनों को विभिन्न ग्रन्थों में अलग अलग तरीके से परिभाषित किया है। महर्षि पतंजलि के अनुसार आसन की परिभाषा-   महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र के साधन पाद में आसन को परिभाषित करते हुए कहा है। 'स्थिरसुखमासनम्' योगसूत्र 2/46  अर्थात स्थिरता पूर्वक रहकर जिसमें सुख की अनुभूति हो वह आसन है। उक्त परिभाषा का अगर विवेचन करे तो हम कह सकते है शरीर को बिना हिलाए, डुलाए अथवा चित्त में किसी प्रकार का उद्वेग हुए बिना चिरकाल तक निश्चल होकर एक ही स्थिति में सु...

हठयोग प्रदीपिका में वर्णित प्राणायाम

हठयोग प्रदीपिका में प्राणायाम को कुम्भक कहा है, स्वामी स्वात्माराम जी ने प्राणायामों का वर्णन करते हुए कहा है - सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी शीतल्री तथा।  भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्टकुंम्भका:।। (हठयोगप्रदीपिका- 2/44) अर्थात् - सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा और प्लाविनी में आठ प्रकार के कुम्भक (प्राणायाम) है। इनका वर्णन ऩिम्न प्रकार है 1. सूर्यभेदी प्राणायाम - हठयोग प्रदीपिका में सूर्यभेदन या सूर्यभेदी प्राणायाम का वर्णन इस प्रकार किया गया है - आसने सुखदे योगी बदध्वा चैवासनं ततः।  दक्षनाड्या समाकृष्य बहिस्थं पवन शनै:।।  आकेशादानखाग्राच्च निरोधावधि क्रुंभयेत। ततः शनैः सव्य नाड्या रेचयेत् पवन शनै:।। (ह.प्र. 2/48/49) अर्थात- पवित्र और समतल स्थान में उपयुक्त आसन बिछाकर उसके ऊपर पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि किसी आसन में सुखपूर्वक मेरुदण्ड, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए बैठेै। फिर दाहिने नासारन्ध्र अर्थात पिंगला नाडी से शनैः शनैः पूरक करें। आभ्यन्तर कुम्भक करें। कुम्भक के समय मूलबन्ध व जालन्धरबन्ध लगा कर रखें।  यथा शक्ति कुम्भक के प...