Skip to main content

UGC NET Yoga MCQ practice set

 UGC NET Yoga Question Answers for practice (set-3)
  
1. कैल्सियम की सर्वाधिक मात्रा किस खाद्य स्त्रोत में होती है?
1. दुग्ध             2. पालक
3. केला              4. रागी

2. सकारात्मक अभिवृत्ति, प्रसन्‍नता, हलकापन, आध्यात्मिक जागृति और चेतना निम्नलिखित में किसकी विशेषताएँ हैं?
1. रज गुण                     2. सत्व गुण
3. रज एवं तम गुण         4. तम गुण

3.“आधि' शब्द से आप कया समझते हैं?     
1. अन्नमय कोश में उत्पन्न हुए शारीरिक विकार
2. मनोमय कोश में उत्पन्न हुए मानसिक/भावनात्मक विकार
3. अन्नमय कोश में उत्पन्न हुए मानसिक/भावनात्मक विकार
4. मनोमय कोश में उत्पन्न हुए शारीरिक विकार

4. शरीर में “विश्राम एवं पाचन” अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी तंत्रिका तंत्र का भाग है
1. परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र
2. संश्लिष्ट तंत्रिका तंत्र
3. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
4. स्वसंचालित तंत्रिका तंत्र

5. चयापचयी (मेटाबॉलिक) सिंड्रोम में निम्नलिखित में से किनका संयोजन पाया जाता है?
1. उदरीय मोटापा, बढ़ा हुआ रक्तचाप, अल्प एचडीएल
2. बढ़ा हुआ रक्तचाप, उच्च एचडीएल
3. उदरीय मोटापा, उच्च एचडीएल (उच्च घनत्व लिपोप्रोटीन)
4. बढ़ा हुआ फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज उच्च एचडीएल

6. ध्यान का निम्नलिखित में से कौन सा सिद्ध प्रभाव नहीं है?
1. स्ट्रेस (तनाव) को घटाता है।
2. रक्तचाप को सामान्य करता है।
3. रक्त शर्करा को सामान्य करना है।
4. कॉर्टिसोल को बढ़ाता है।

7. हठ प्रदीपिका तथा घेरण्ड-संहिता के अनुसार सूत्रनेति की लम्बाई हैं
1. दो बालिश्त (लगभग 1.5फुट)
2. एक बालिश्त (लगभत 9 इंच)
3. आधा बालिश्त (लगभग 4.5 इंच)
4. डेढ़ बालिश्त (लगभग 13.5इंच)

8.हठप्रदीपिका के अनुसार सूत्रनेति किस रोग में लाभकारी नही है?
1. नेत्र सम्बन्धी विकार       2. कपाल शुद्धि
3. जवरूर्ध्वगत रोग            4. अम्ल पित्त

9. हठप्रदीपिका के अनुसार वस्त्रधौति की लम्बाई है
1. 7.5 फुट (लगभग).     2. 15 फुट (लगभग)
3. 22.5 फुट (लगभग)    4. 26 फुट (लगभग)

10. हठप्रदीपिका के अनुसार निम्नलिखित में से कौन सा लाभ पश्चिमोत्तान आसन का नहीं बताया गया है?
1. अम्लता कम करता है।
2. उदर की वसा को कम करता है।
3. सुषुम्ना में प्राण प्रविष्ट होता है।
4. जठराग्नि बढ़ाता है।

11. शिक्षण को प्रभावित करने में निम्नलिखित में से कौन सा कारक नहीं होता है?
1. शिक्षक               2. छात्र
3. वातावरण           4. शिक्षक का सामाजिक स्तर

12. प्रभावोत्पादक शिक्षण के लिए योग पाठ योजना को कब तैयार किया जाना चाहिए?
1. कक्षा से एक सप्ताह पहले
2. कक्षा से ठीक पहले
3. कक्षा से एक-दो दिन पहले
4. कक्षा की समाप्ति के बाद

13. योग के व्यावहारिक शिक्षण के दौरान प्रश्न और उत्तर सत्र को कब आयोजित किया जाना चाहिए?
1. कक्षा के प्रारंभ में
2. अभ्यास का परिचय देने के बाद
3. समूह अभ्यास के बाद
4. पाठ के अंत में

14. छोटे समूहों के लिए योग के शिक्षण में बैठने की प्रभावी व्यवस्था है
1. अर्द्ध-वृत्ताकार    2. वृत्ताकार
3. पंक्ति                4. स्तंभरकार (कॉलम)

15. पतंजलि के अनुसार प्रमाण हैं:
a. अनुमान
b. प्रत्यक्ष
c. विकल्प
d. आगम 

निम्नलिखित कूटों का उपयोग करते हुए सही उत्तर का चयन करें:
कूटः
1. (a), (b), (c) सही हैं, (d) सही नहीं है।
2. (b), (a), (d) सही हैं, (c) सही नहीं है।
3. (d), (c), (b) सही हैं, (a) सही नहीं है।
4. (c), (d), (a) सही हैं, (d) सही नहीं है।

16. पातंजल योग सूत्र के अनुसार सिद्धियाँ किसके माध्यम से प्राप्त की जा सकती हैं?
i. औषधि
ii. शक्तिपात
iii. तप
iv. समाधि
सही उत्तर के लिए निम्नलिखित कूटों का उपयोग करें: 

कूटः
1. ii, iii एवं iv सही हैं।
2. i, iii एवं iv सही हैं।
3. i, ii एवं iii सही हैं।
4. i, ii एवं iv सही हैं।

17. निम्नलिखित उप-प्राण वायु हैं:
i. कृकर
ii. मकर
iii. कूर्म
iv. भुजंगिनी
कूट के अनुसार सही संयोजन हैं:

कूटः
1. i और ii सही हैं।
2. ii, iv और i सही हैं।
3. i और iii सही हैं।
4. iii, iv और i सही हैं।

18. कुंठा के प्रमुख स्त्रोत हैं
i. वातावरण संबंधी कारक
ii. व्यक्तिगत कारक
iii. विवाद
iv. सकारात्मक लक्ष्य
कूटों के अनुसार सही संयोजन ज्ञात करें: 

कूटः
1. iv, ii और i सही हैं।
2. iii, ii और i सही हैं।
3. ii, iii और iv सही हैं।
4. i, iii और iv सही हैं।

19.अग्न्याशय (पैनक्रियाज) किन हार्मोन्स का स्राव करता है?
i. सोमेयेस्टेटिन
ii. ग्लुकैगॉन
iii. कॉर्टिसोल
iv. एपिनेफ्रीन
उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें; 

कूटः
1. i और iii सही हैं।     2. i और ii सही हैं।
3. ii और iv सही हैं।    4. ii और iii सही हैं।

20. हमारे आहार के सार घटक (प्रोक्जीमट प्रिल्सपल्स) हैं;
i. प्रोटीन्स
ii. मिनरल्स (खनिज तत्त्व)
iii. फैट्स (वसा)
iv. विटामिन्स
उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें: 

कूटः
1. i और ii सही हैं।     2. i और iii सही हैं।
3. ii और iv सही हैं।   4. ii और iii सही हैं।

21. आयुर्वेद के अनुसार किसी भी बीमारी के कारण के मुख्य कारक हैं:
i. सात्म्येन्द्रियार्थ संयोग
ii. प्रज्ञापराध
iii. परिणाम
iv. दोष साम्यता
सही उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें:
कूटः
1. ii और iii सही हैं।         2. i और ii सही हैं।
3. i और iii सही हैं।          4. ii और iv सही हैं।

22. वात प्रधान प्रकृति वाले व्यक्तियों ..... किन गुणों से युक्त आहार लाभदायक है?  सही उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें:
i. शीत
ii. मधुर
iii. उष्ण
iv. लघु 

कूटः
1. i और ii सही हैं।       2. ii और iv सही हैं।
3. i और iv सही हैं।      4. ii और iii सही हैं।

23. निम्नलिखित में से कौन से योगाभ्यास अम्ल पित्त (हाइपरएसिडिटी ) के मरीजों के लिए लाभदायक हैं?
i. धौति
ii. कपालभाति
iii. पश्चिमोत्तानासन
iv. नाड़ी शोधन
सही उत्तर का चयन करने के लिए निम्नलिखित कूटें का उपयोग करें;
कूटः
1. i और ii सही हैं।          2. i और iv सही हैं।
3. ii और iv सही हैं।        4. iii और iv सही हैं।

24. मुख्य पेशीकंकाली विकार कौन-कौन से हैं?
i. कशेरुकासंधिग्रह
ii. सन्धिशोथ
iii. अपस्मार
iv. पार्किसन रोग
कूट के अनुसार सही संयोजन ज्ञान करें:
कूटः
1. i और ii सही हैं।      2. i और iv सही हैं।
3. i और ii सही हैं।     4. i, ii और iii सहीं हैं।

25. पैरासिम्पैथिक तंत्रिका तंत्र के उद्दीपन के कारण होता है-
i. हृदय गति का बढ़ना
ii. चिन्तास्तर में वृद्धि करना
iii. हृदय गति का घटना
iv. मांसपेशियों का शिथिलन
कूटः
1. i और ii सही हैं।     2. iii और iv सही हैं।
3. ii और iii सही हैं।    4. i और iii सही हैं।  

Answer- 1- (4), 2- (2), 3- (2), 4- (1), 5- (1), 6- (4), 7- (2), 8- (4), 9- (3), 10- (1), 11- (4), 12- (2), 13- (3), 14- (1), 15- (2), 16- (2), 17- (3), 18- (2), 19- (2), 20- (2), 21- (1), 22- (4), 23- (2), 24- (3), 25- (2)

To be continuous......  

Yoga Book in Hindi

Yoga Books in English

Yoga Book for BA, MA, Phd

Gherand Samhita yoga book

Hatha Yoga Pradipika Hindi Book

Patanjali Yoga Sutra Hindi

Shri mad bhagwat geeta book hindi

UGC NET Yoga Book Hindi

UGC NET Paper 2 Yoga Book English

UGC NET Paper 1 Book

QCI Yoga Book 

Yoga book for class 12 cbse

Yoga Books for kids


Yoga Mat   Yoga suit  Yoga Bar   Yoga kit


Yoga MCQ 

योग अध्ययन सामग्री

 हठयोग



Comments

Popular posts from this blog

"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र

7 Chakras in Human Body हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है। 'चक्र' शब्द का अर्थ-  'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है। योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा ग...

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ आधार (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार आधार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार (12) भ्रूमध्य आधार (13) नासिका आधार (14) नासामूल कपाट आधार (15) ललाट आधार (16) ब्रहमरंध्र आधार सिद्ध...

अष्टांग योग । महर्षि पतंजलि । योगसूत्र

महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र का मुख्य विषय अष्टांग योग प्रयोगात्मक सिद्धान्तों पर आधारित योग के परम लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक साधना पद्धति है।  “अष्टांग' शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। (अष्ट + अंग) जिसका अर्थ है आठ अंगों वाला। अर्थात अष्टांगयोग वह साधना मार्ग है जिसमें आठ साधनों का वर्णन मिलता है जिससे साधक अपने शरीर व मन की शुद्धि करके परिणामस्वरूप एकाग्रता भाव को प्राप्त कर समाधिस्थ हो जाता है तथा कैवल्य की प्राप्ति कर लेता है।   " यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावंगानि  " । (योगसूत्र- 2 /29) अष्टांग योग के आठ अंग इस प्रकार से है- 1. यम 2. नियम 3. आसन 4. प्राणायाम  5. प्रत्याहार  6. धारणा  7. ध्यान  8. समाधि  महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग को दो भागों में विभाजित किया जाता है। - 1. बहिरंग योग 2. अन्तरंग योग। 1. यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम 5. प्रत्याहार इन पाँच को बहिरंग योग कहा जाता है। तथा 6. धारणा 7. ध्यान और 8. समाधि इन तीन को अन्तरंग योग कहा जाता है।   बहिरंग योग- 1. यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम 5. प...

हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध

  हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध हठयोग प्रदीपिका में मुद्राओं का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम जी ने कहा है महामुद्रा महाबन्धों महावेधश्च खेचरी।  उड़्डीयानं मूलबन्धस्ततो जालंधराभिध:। (हठयोगप्रदीपिका- 3/6 ) करणी विपरीताख्या बज़्रोली शक्तिचालनम्।  इदं हि मुद्रादश्क जरामरणनाशनम्।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/7) अर्थात महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयानबन्ध, मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, विपरीतकरणी, वज़्रोली और शक्तिचालनी ये दस मुद्रायें हैं। जो जरा (वृद्धा अवस्था) मरण (मृत्यु) का नाश करने वाली है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है।  1. महामुद्रा- महामुद्रा का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है- पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम्।  प्रसारितं पद कृत्या कराभ्यां धारयेदृढम्।।  कंठे बंधं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वतः।  यथा दण्डहतः सर्पों दंडाकारः प्रजायते  ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेतत् ।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/9,10)  अर्थात् बायें पैर को एड़ी को गुदा और उपस्थ के मध्य सीवन पर दृढ़ता से लगाकर दाहिने पैर को फैला कर रखें...

Teaching Aptitude MCQ in hindi with Answers

  शिक्षण एवं शोध अभियोग्यता Teaching Aptitude MCQ's with Answers Teaching Aptitude mcq for ugc net, Teaching Aptitude mcq for set exam, Teaching Aptitude mcq questions, Teaching Aptitude mcq in hindi, Teaching aptitude mcq for b.ed entrance Teaching Aptitude MCQ 1. निम्न में से कौन सा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है ? (1) पाठ्यक्रम के अनुसार सूचनायें प्रदान करना (2) छात्रों की चिन्तन शक्ति का विकास करना (3) छात्रों को टिप्पणियाँ लिखवाना (4) छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार करना   2. निम्न में से कौन सी शिक्षण विधि अच्छी है ? (1) व्याख्यान एवं श्रुतिलेखन (2) संगोष्ठी एवं परियोजना (3) संगोष्ठी एवं श्रुतिलेखन (4) श्रुतिलेखन एवं दत्तकार्य   3. अध्यापक शिक्षण सामग्री का उपयोग करता है क्योंकि - (1) इससे शिक्षणकार्य रुचिकर बनता है (2) इससे शिक्षणकार्य छात्रों के बोध स्तर का बनता है (3) इससे छात्रों का ध्यान आकर्षित होता है (4) वह इसका उपयोग करना चाहता है   4. शिक्षण का प्रभावी होना किस ब...

हठयोग प्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म

हठप्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म हठयोगप्रदीपिका हठयोग के महत्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक हैं। इस ग्रन्थ के रचयिता योगी स्वात्माराम जी हैं। हठयोग प्रदीपिका के द्वितीय अध्याय में षटकर्मों का वर्णन किया गया है। षटकर्मों का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम  जी कहते हैं - धौतिर्बस्तिस्तथा नेतिस्त्राटकं नौलिकं तथा।  कपालभातिश्चैतानि षट्कर्माणि प्रचक्षते।। (हठयोग प्रदीपिका-2/22) अर्थात- धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि और कपालभोंति ये छ: कर्म हैं। बुद्धिमान योगियों ने इन छः कर्मों को योगमार्ग में करने का निर्देश किया है। इन छह कर्मों के अतिरिक्त गजकरणी का भी हठयोगप्रदीपिका में वर्णन किया गया है। वैसे गजकरणी धौतिकर्म के अन्तर्गत ही आ जाती है। इनका वर्णन निम्नलिखित है 1. धौति-  धौँति क्रिया की विधि और  इसके लाभ एवं सावधानी- धौँतिकर्म के अन्तर्गत हठयोग प्रदीपिका में केवल वस्त्र धौति का ही वर्णन किया गया है। धौति क्रिया का वर्णन करते हुए योगी स्वात्माराम जी कहते हैं- चतुरंगुल विस्तारं हस्तपंचदशायतम। . गुरूपदिष्टमार्गेण सिक्तं वस्त्रं शनैर्गसेत्।।  पुनः प्रत्याहरेच्चैतदुदितं ध...

ज्ञानयोग - ज्ञानयोग के साधन - बहिरंग साधन , अन्तरंग साधन

  ज्ञान व विज्ञान की धारायें वेदों में व्याप्त है । वेद का अर्थ ज्ञान के रूप मे लेते है ‘ज्ञान’ अर्थात जिससे व्यष्टि व समष्टि के वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। ज्ञान, विद् धातु से व्युत्पन्न शब्द है जिसका अर्थ किसी भी विषय, पदार्थ आदि को जानना या अनुभव करना होता है। ज्ञान की विशेषता व महत्त्व के विषय में बतलाते हुए कहा गया है "ज्ञानाग्नि सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा" अर्थात जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि ईंधन को जलाकर भस्म कर देती है उसी प्रकार ज्ञान रुपी अग्नि कर्म रूपी ईंधन को भस्म कर देती है। ज्ञानयोग साधना पद्धति, ज्ञान पर आधारित होती है इसीलिए इसको ज्ञानयोग की संज्ञा दी गयी है। ज्ञानयोग पद्धति मे योग का बौद्धिक और दार्शनिक पक्ष समाहित होता है। ज्ञानयोग 'ब्रहासत्यं जगतमिथ्या' के सिद्धान्त के आधार पर संसार में रह कर भी अपने ब्रह्मभाव को जानने का प्रयास करने की विधि है। जब साधक स्वयं को ईश्वर (ब्रहा) के रूप ने जान लेता है 'अहं ब्रह्मास्मि’ का बोध होते ही वह बंधनमुक्त हो जाता है। उपनिषद मुख्यतया इसी ज्ञान का स्रोत हैं। ज्ञानयोग साधना में अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त ...

चित्त प्रसादन के उपाय

महर्षि पतंजलि ने बताया है कि मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा इन चार प्रकार की भावनाओं से भी चित्त शुद्ध होता है। और साधक वृत्तिनिरोध मे समर्थ होता है 'मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम्' (योगसूत्र 1/33) सुसम्पन्न व्यक्तियों में मित्रता की भावना करनी चाहिए, दुःखी जनों पर दया की भावना करनी चाहिए। पुण्यात्मा पुरुषों में प्रसन्नता की भावना करनी चाहिए तथा पाप कर्म करने के स्वभाव वाले पुरुषों में उदासीनता का भाव रखे। इन भावनाओं से चित्त शुद्ध होता है। शुद्ध चित्त शीघ्र ही एकाग्रता को प्राप्त होता है। संसार में सुखी, दुःखी, पुण्यात्मा और पापी आदि सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के प्रति साधारण जन में अपने विचारों के अनुसार राग. द्वेष आदि उत्पन्न होना स्वाभाविक है। किसी व्यक्ति को सुखी देखकर दूसरे अनुकूल व्यक्ति का उसमें राग उत्पन्न हो जाता है, प्रतिकूल व्यक्ति को द्वेष व ईर्ष्या आदि। किसी पुण्यात्मा के प्रतिष्ठित जीवन को देखकर अन्य जन के चित्त में ईर्ष्या आदि का भाव उत्पन्न हो जाता है। उसकी प्रतिष्ठा व आदर को देखकर दूसरे अनेक...

चित्त विक्षेप | योगान्तराय

चित्त विक्षेपों को ही योगान्तराय ' कहते है जो चित्त को विक्षिप्त करके उसकी एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं उन्हें योगान्तराय अथवा योग के विध्न कहा जाता।  'योगस्य अन्तः मध्ये आयान्ति ते अन्तरायाः'।  ये योग के मध्य में आते हैं इसलिये इन्हें योगान्तराय कहा जाता है। विघ्नों से व्यथित होकर योग साधक साधना को बीच में ही छोड़कर चल देते हैं। विध्न आयें ही नहीं अथवा यदि आ जायें तो उनको सहने की शक्ति चित्त में आ जाये, ऐसी दया ईश्वर ही कर सकता है। यह तो सम्भव नहीं कि विध्न न आयें। “श्रेयांसि बहुविध्नानि' शुभकार्यों में विध्न आया ही करते हैं। उनसे टकराने का साहस योगसाधक में होना चाहिए। ईश्वर की अनुकम्पा से यह सम्भव होता है।  व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः (योगसूत्र - 1/30) योगसूत्र के अनुसार चित्त विक्षेपों  या अन्तरायों की संख्या नौ हैं- व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति, भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमिकत्व और अनवस्थितत्व। उक्त नौ अन्तराय ही चित्त को विक्षिप्त करते हैं। अतः ये योगविरोधी हैं इन्हें योग के मल...

Information and Communication Technology विषय पर MCQs (Set-3)

  1. "HTTPS" में "P" का अर्थ क्या है? A) Process B) Packet C) Protocol D) Program ANSWER= (C) Protocol Check Answer   2. कौन-सा उपकरण 'डेटा' को डिजिटल रूप में परिवर्तित करता है? A) हब B) मॉडेम C) राउटर D) स्विच ANSWER= (B) मॉडेम Check Answer   3. किस प्रोटोकॉल का उपयोग 'ईमेल' भेजने के लिए किया जाता है? A) SMTP B) HTTP C) FTP D) POP3 ANSWER= (A) SMTP Check Answer   4. 'क्लाउड स्टोरेज' सेवा का एक उदाहरण क्या है? A) Paint B) Notepad C) MS Word D) Google Drive ANSWER= (D) Google Drive Check Answer   5. 'Firewall' का मुख्य कार्य क्या है? A) फाइल्स को एनक्रिप्ट करना B) डेटा को बैकअप करना C) नेटवर्क को सुरक्षित करना D) वायरस को स्कैन करना ANSWER= (C) नेटवर्क को सुरक्षित करना Check Answer   6. 'VPN' का पू...