जल तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व-
इनमें भी दो प्रकार के भेद हैं-
1. ऐसी सप्जियाँ जो जमीम के ऊपर होती है- जैसे- लौकी, परवल, तोरई, टिण्डा, गोभी आदि। इममें जल तत्व अधिक होता है और इनमे शरीर से मल निकालने को शक्ति भी अधिक होती है।
2 आलू, शकरकंद आदि कंदमूल जिनमे जल तत्व कम तथा पृथ्वी तत्व अधिक होता है ये कंदमूल उपर्युक्त सब्जियों की अपेक्ष अधिक गारिष्ठ होेते हैं।
पंच महाभूतों में चौथा स्थान जल का है जल हमारे जीवन में बहुत ही मह्त्वपूर्ण भूमिका रखता हैं। जल के कारण ही हम सभी स्वाद का अनुभव कर पाते हैं जैसे मीठा, खट्टा, कड़वा, तीखा, कसैला तथा नमकीन। पानी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। हमारे शरीर की रचना के अनुसार भी इसका महत्व है हमारे शरीर का 2/३ भाग केवल जल ही होता है। इस तत्व के द्वारा ही हम अपने शरीर के आन्तरिक व बाहय अंगों को शुद्ध व स्वच्छ रख पाते हैं जल में विजातीय द्रवों व अन्य विषों को अपने में घोलने तथा उन्हें पेशाब, श्वांस एवं पसीने के माध्यम से बाहर निकालने का गुण है। जल के द्वारा हमारे शरीर का रक्त संचार अच्छा हो सकता है। ठंडे जल से स्नान करने पर थकान- गिरावट दूर होकर, शारीरिक, मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। शरीर पर स्नान के अलग- अलग प्रभाव देखने को मिलते हैं। आज कल स्नान विधि बड़ी ही दोषपूर्ण है क्योंकि स्नान के नाम पर केवल साबुन लगाकर दो चार लोटे जल गिराकर उसे स्नान मान लेना गलत है।
स्नान का तभी लाभ प्राप्त हो सकता है जब शान्तिपूर्वक ढंग से आवश्यकतानुसार ठंडे, गर्म, शीतल पानी का प्रयोग कर स्नान किया जाए तथा प्रत्येक अंग प्रत्यंग को ठीक ढंग से रगड़ के मालिश भी की जाये तथा स्नान के पश्चात कोमल तौलिया से शरीर को सोखना नहीं बल्कि खुरदरी तौलिया से रगड़ कर पानी को पोछने से हमारी त्वचा स्वस्थ चमकदार तथा कोमल बनती है। स्नान कई प्रकार के होते हैं उपचार के लिए पानी का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है।
1. सामान्य स्नान- सामान्य स्नान में नदी, तालाब समुन्द्र एवं कुंए के पानी में डुबकी लगाकर नहाना सम्मिलित है या घर में बाल्टी भरकर नहाना झरनों के नीचे नहाना तथा तैरना आदि।
2. फॉँव्वारा स्नान- यह वर्षा स्नान के समान ही लाभप्रद है। इसमें बाजार से मिलने वाले फव्वारे को एक पाइप से जोड़कर पूरे शरीर पर फव्वारे से पानी गिराएं इससे गिरने वाला पानी सम्पूर्ण शरीर पर पड़ना चाहिए। इस स्नान की अवधि 1-6 मिनट हो सकती है।
3. जलधार स्नान- इस स्नान के लिए रबड़ की नली से जल की सीधी धार गिराई जाती है और इस प्रकार गिराई जाती है कि जल पूरे शरीर पर पडे।
4. दीक्षा सनान- सामान्य शरीर को ठंडे जल में डुबाकर किए गए स्नान को दीक्षा स्नान कहते हैं।
5. पूर्ण स्नान- रोज रात को मिट्टी के घड़े में रखे हुए जल को शरीर पर उडेलकर हथेली से तेज-तेज रगड़ना चाहिए।
इन स्नानों से होने वाले लाभ -
- रक्त संचार में वृद्धि होती है।
- थकान दूर होती है।
- पाचन तंत्र पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
- स्फूर्ति बढ़ती है।
- भूख अच्छी लगती है।
- शरीर में हल्के पन का अनुभव होता है।
पशु-पक्षी सभी प्रकृति की गोद में रहते हैं तथा उसके नियमों का पालन करते हुए सुखी जीवन यापन करते हैं वहीं रहते हैं, खाते हैं, सोते हैं तथा बीमार होने पर प्रकृति के नियमों पर चलकर ठीक हो जाते हैं। मनुष्य भी प्रकृति के नियमों पर चलकर सुखी व स्वस्थ जीवन का यापन कर सकता है।
क्रमशः गर्म और ठंडे पानी के प्रयोग से शरीर के अन्दर रक्त परिभ्रमण की प्रक्रिया काफी तीव्र हो जाती है जिसके फलस्वरूप शरीर क्रिया, विज्ञान की दृष्टि से निम्न प्रकार से स्वास्थ्य वर्धक एवं रोग प्रतिरोधक प्रभाव होते हैं।
- ठंडे जल के प्रयोग से श्वांस की गति तेज हो जाती है, फल्रस्वरूप शरीर द्वारा आक्सीजन तथा ओजोन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। फलस्वरूप विजातीय पदार्थों का दहन तथा आक्सीकरण काफी तेजी से होने लगता है।
- शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि ठंडे जल के प्रयोग से नये लाल रक्ताण (R.B.C) बनने लगते हैं बल्कि जो लाल कण सुप्तावस्था में पड़े रहते हैं वे क्रियाशील हो उठते हैं।
- शरीर में जल की कमी होने पर जैसे कि ज्वर, हैजा, मधुमेह आदि की स्थिति में शरीर में जल पूर्ति आवश्यक है।
- पानी में नमक, चीनी, नींबू, शहद आदि मिलाकर लेना ज्यादा हितकारी है। गुर्दे के रोग होने पर नमक व पानी का प्रयोग चिकित्सक के अनुसार करें।
- शरीर के तापक्रम को खतरे की सीमा से नीचे लाता है क्योंकि त्वचा द्वारा ताप विकरण की क्रिया बढ़ जाती है।
-. शरीर की धनात्मक विद्यतीय शक्ति बढ़ जाती है।
- विभिन्न शारीरिक संस्थानों द्वासा विजातीय पदार्थ को आसानी से बाहर निकाल फेंकने की क्षमता बढ़ जाती है।
- दाल का पानी, सब्जी का पानी, शिकंजी, जूस आदि में भी पानी का ही अंश होता है और इनके सेवन से पानी के साथ-साथ खनिज लवणों की कमी की भी क्षतिपूर्ति होती है।
- रक्त परिभ्रमण सब जगह सामान्य हो जाता है तथा आवश्यकतानुसार वृद्धि भी होती है।
- स्नायविक संस्थान की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। ऊतकों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है।
- गुर्दा यकृत तथा त्वचा की क्रिया बढ़ जाती है।
- ठंडे जल के प्रयोग से आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड की मात्रा ठीक स्तर पर बढ़ जाती है।
- कार्बोहाइडेट एवं चिकनायी की दहन क्रिया बढ़ जाती है।
- आकस्मिक चोट के कारण पैदा हुआ दर्द दूर हो जाता है क्योंकि अवरूद्ध रक्त का परिभ्रमण सामान्य हो जाता है।
-. शरीर की आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है तथा कार्बनडाइक्साइड के निर्यात की क्रिया तीव्र हो जाती है।
- जल चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किए गये प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जब ठण्डे जल का सामान्य प्रयोग रक्त के क्षारत्व को बढ़ाता है एवं अम्लत्व को घटाता है।
-. पाचन संस्थान द्वारा खाद्य रसों की प्रचूषण एवं आत्मसात करने की क्रिया बढ़ जाती है।
इस प्रकार जल द्वारा पुराने तथा भयंकर रोगों से मुक्ति दिलाई जा सकती है अपितु जल चिकित्सा यह सिद्ध कर चुकी है।
ठंडे पानी का शरीर पर अल्पकालीन प्रयोग करने पर निम्न प्रभाव पड़ता है
* शरीर के तापमान को बढ़ाता है।
* त्वचा की कार्यशीलता में वृद्धि करता है।
* श्वांस की क्रिया को धीमा करता है।
* पोषण शक्ति में वृद्धि करता है।
* अल्प समय के लिए रक्त कोषों को संकुचित करता है।
*मांसपेशियों को संकुचित करता है।
* हृदय की क्रियाशीलता को बढ़ाता है।
* शरीर की नाडियों को उत्तेजित करता है।
* रक्तचाप को बढ़ाता है।
ठंडे पानी का शरीर पर दीर्घकालीन प्रयोग करने पर निम्न प्रभाव पड़ता है -
* शारीरिक तापमान को घटाता है।
* त्वचा की कार्यशीलता में ह्रास उत्पन्न करता है।
* पाचन क्रिया को मध्यम करता है।
* पोषण क्षमता को अधिक प्रभावित नहीं करता है।
* मांसपेशियों को संकुचित करता है।
* हृदय की क्रियाशीलता को कमजोर करता है।
* शरीर की नाडियों पर मृदु प्रभाव डालता है।
* रक्त चाप को घटाता है।
* मांसपेशियों को संकुचित करता है।
पृथ्वी तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व-
Influence and importance of the earth element on the body- मिट्टी में सभी पंच महाभूतों का समावेश है। इस कारण इसे पंच महाभूतों से सम्पन्न माना जाता है। मिट्टी को इसलिए माँ की तरह पूजा जाता है।
भारत में प्राचीन समय से ही मिट्टी को बहुत अधिक महत्य दिया जाता है। मिट्टी को विभिन्न कार्यों में प्रयोग किया जाता है जैसे मिट्टी को शरीर पर मल-मलकर नहाया जाता है शौच के बाद मिट्टी से हाथ धोना, बर्तनों को मिट्टी से धोना, घर के फर्श को मिट्टी से लीपना मिट्टी से बर्तनों को बनाना, मिट्टी में लेटना, खेलना, मिट्टी का शरीर के विभिन्न अंगों पर लेप करना। मिट्टी पर नंगे पैर चलना, आदि। हम मिट्टी पर सोकर एवं मिट्टी के शेष विभिन्न प्रयोग कर पूर्ण स्वास्थ्य एवं आनन्द प्राप्त कर सकते हैं।
मिट्टी अपने निम्न विशेष गुणों के कारण और भी उपयोगी व महत्वपूर्ण बन गई है जो इस प्रकार से है -
1. मिट्टी में ठंडे और गर्म दोनों तापमानों को अपने अन्दर सोखकर उसे सामान्य करने का गुण निहित होने के कारण उपचार में बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होती है।
2. मिट्टी बहुत ही सस्ती व सुलभ होती है।
3. मिट्टी में गंध को नष्ट करने का गुण निहित है बड़े से बड़े कूडे के ढेर को मिट्टी के नीचे दबा देने पर दुर्गन्ध मिट जाती है।
4. मिट्टी में कीटाणुओं को नष्ट करने का गुण है।
5. मिट्टी निर्मल होने के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण है।
6. मिट्टी में जल, खनिज लवण तथा कई जरूरी तत्व पाए जाते हैं जो कि चिकित्सा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
7. मिट्टी में जन्म देने की शक्ति है।
8. मिटटी में सोखने के गुण के कारण शरीर के विष को मिनटों में सोखकर बाहर कर देती है।
आज का युग आधुनिक युग है। जिसने हमें विकास के नाम पर प्रकृति से दूर कर दिया है। आज का मानव प्रकृति से दूर शहरों में बड़ी उंची- उंची इमरतों में रहता है। वह बहुत ही नाजुक भी बन गया है क्योंकि नंगे पैर चलने पर उसे दर्द होता है। इसलिए जूते पहनकर चलता है। शहरी मानव बहुत ही कठोर जीवन जी रहा है। प्रदूषण भरे वातावरण में, अप्राकृतिक भोजन खाकर, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर अप्राकृतिक जीवन शैली अपनाकर बड़े- बड़े भयंकर आधुनिक पद्धति के रोगों को भोग रहा है। आज का मानव पैदल मिट्टी पर चलना तो दूर घर में मिट्टी के कणों को देखकर ही विचलित हो जाते हैं। वह जानते भी नहीं कि वह कितने अज्ञानी हैं जो मिट्टी तत्व की अवहेलना कर रहा है। वह नहीं जानता की प्राकृतिक जीवन जीना और पंच महाभूतों के निकट रहकर उनका नित सेवन करना वास्तविक आनन्द की अनुभूति कराता है। नंगे पैर चलने से रक्त संचार बेहतर होता है तथा पैर कोमल बनते हैं।
मिट्टी के विभिन्न प्रयोगों के द्वारा स्वस्थ व निरोगी काया को प्राप्त किया जा सकता है। जैसे धरती पर सोना, मिट्टी की मालिश, मिट्टी की पट्टी, मिट्टी पर नंगे पैर टहलना, मिट्टी से दाँत साफ करना आदि।
यह तत्व हमें हमारे भोजन से भी प्राप्त होता है। खाद्य पदार्थों, फलो आदि में पाया जाता है अनाज, दालें और चावल व गेहूँ में भी यह तत्व पाया जाता है। इन भोजन पदार्थों के द्वारा इस तत्व की पूर्ति कर भयंकर रोगों को दूर किया जा सकता है।
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