Skip to main content

Yoga Question Answers in Hindi

Yoga Question Answers in Hindi for practice (Set-17)

नोट:- इस प्रश्नपत्र में (25) बहुसंकल्पीय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के दो (2) अंक है। सभी प्रश्न अनिवार्य  

 1. निम्नलिखित में से कौन-से क्लेश हैं?
(a) स्मिता
(b) अस्मिता
(c) दुःख
(d) राग
सही विकल्प चुनिए :
1. (b) और (d)
2. (a) और (b)
3. (a) और (c)
4. (b) और (c)  

2. निम्नलिखित में से किसमें प्रोटीन की सर्वाधिक मात्रा होती है?
1. सोयाबीन     2. मूंग
3. अरहर         4. चना

3. क्लेश की निम्नलिखित अवस्थाओं को क्रम में व्यवस्थित कीजिए :
(a) तनु
(b) उदार
(c) प्रसुप्त  
(d) विच्छिन्न
सही विकल्प चुनिए :
1. (b)-(a)-(c)-(d)  
2. (b)-(c)-(d)-(a)
3. (a)-(c)-(b)-(d)  
4. (c)-(a)-(d)-(b)  

4. निम्नलिखित में से कौन सी कलाई की अस्थियाँ हैं?
(a) स्थृण (इन्कस)
(b) अर्द्धचंद्राकार (लूनेट)
(c) समुंड (कैपिटेट)
(d) रकाब (स्टेपीज)
सही विकल्प चुनिए :
1. (a) और (d)
2. (a) और (b)
3. (c) और (d)
4. (b) और (c)  

5. नीचे दो कथन दिए गए हैं, जिनमें से एक अभिकथन (A) और दूसरा तर्क (R) है:
अभिकथन (A) : योगाभ्यासों का स्थान शांत होना चाहिए।
तर्क (R) : योगाभ्यास शांत स्थान पर शरीर और मन को शिथिल करने के उद्देश्य से रिक्त उदर किए जाने चाहिए।
उपर्युक्त दोनों कथनों के संदर्भ में निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए :
1. (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है ।
2. (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) की सही व्याख्या है।
3. (A) सही है, परन्तु (R) ग़लत है।
4. (A) ग़लत है, परन्तु (R) सही है ।

6. “तैत्तिरीयोपनिषद्‌' के अनुसार पंचभूत के उदृगम का सही क्रम क्या है?
1. आकाश, अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु
2. अग्नि, वायु आकाश, जल, पृथ्वी
3. वायु, अग्नि, जल, आकाश, पृथ्वी
4. आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी

7. योग सूत्रानुसार किस अवस्था में स्थित होने पर पूर्वजन्म का ज्ञान होता है?
1. अहिंसा
2. अस्तेय
3. अपरिग्रह
4. स्वाध्याय 

8. क्षणिकवाद का सिध्दान्त किस दर्शन से संबन्धित है?
1. जैन
2. बौद्ध
3. सांख्य
4. चार्वाक

9. 'मुण्डकोपनिषद्‌' में ईश्वर के सिर की किससे तुलना की गई है?
1. अग्नि
2. वेंद
3. ज्ञान
4. बुद्धि

10. 'घेरण्डसंहिता' के अनुसार किस आसन से कुण्डलिनी जागरण संभव है?
1. भुजंगासन
2. पश्चिमोत्तानासन
3. धनुरासन
4. मस्यासन

11. घेरण्डसंहिता' के अनुसार नाड़ीशुद्धि के प्रकार हैं
(a) समनु
(b) निर्मनु
(c) सगर्भ
(d) निगर्भ
सहीं विकल्प चुनिए :
1. (a) और (b)
2. (b) और (c)
3. (a) और (c)
4. (b) और (d) 

12. सूची- i को सूची- ii से सुमेलित कीजिए :
                सूची- i                                     सूची- ii
(a) ततो द्वन्द्वानभिघातः                   (i) प्राणायाम
(b) धारणासु च योग्यता मनसः             (ii) यम
(c) ततः परमावश्यतेद्धियाणाम्‌             (iii) नियम
(d) संतोषादनुत्तमसुखलाभः                 (iv) आसन
(e) अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्रोपस्थानम्‌  (v) प्रत्याहार
दिए गए विकल्प में से सही उत्तर चयन कीजिए :
1. (a)-(i), (b)-(ii), (c)-(iii), (d)-(iv), (e)-(v)
2. (a)-(ii), (b)-(i), (c)-(iv), (d)-(v), (e)-(iii)
3. (a)-(iii), (b)-(ii), (c)-(i), (d)-(iv), (e)-(v)
4. (a)-(iv), (b)-(i), (c)-(v), (d)-(iii), (e)-(ii)

13. निम्नलिखित को क्रमानुसार व्यवस्थित कीजिए :
(a) मूत्रवाहिनी (यूरेटर)
(b) वृक्‍क (किडनी)
(c) मूत्राशय (यूरीनरी ब्लैडर)
(d) मूत्रमार्ग (यूरेथ्रा)
सही विकल्प चुनिए :
1. (b)-(a)-(c)-(d)  
2. (a)-(b)-(d)-(c)
3. (b)-(a)-(d)-(c)  
4. (b)-(c)-(a)-(d)

14. ग्लूकोजेनेसिस की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से किन से ग्लूकोज का निर्माण होता है?
(a) कार्बोहाइड्रेट
(b) एमिनो अम्ल
(c) वसीय अम्ल
(d) विटामिन
सही विकल्प चुनिए :
1. (b) और (d)
2. (a) और (b)
3. (a) और (c)
4. (b) और (c)

15. कफ़ दोष में किन महाभूतों की प्रधानता होती है :
(a) वायु महाभूत
(b) जल महाभूत
(c) पृथ्वी महाभूत
(d) आकाश महाभूत
सही विकल्प चुनिए :
1. (a) और (b)
2. (b) और (d)
3. (b) और (c)
4. (a) और (d) 

16. विटामिन सी के मुख्य स्रोत हैः
(a) ताजे फल
(b) यकृत
(c) हरी पत्तेदार सब्जियाँ
(d) अंडे का पीतक
सही विकल्प चुनिए:
1. (b) और (d)
2. (a) और (c)
3. (a) और (b)
4. (c) और (d)

17. योगसूत्रानुसार 'चित्त परिणामों' का कौन सा क्रम सही है?
1. निरोध, एकाग्रता एवं समाधि
2. समाधि निरोध एवं एकाग्रता
3. एकाग्रता, समाधि एवं निरोध
4. निरोध, समाधि एवं एकाग्रता

18. महर्षि पतञ्जलि के अनुसार यम- नियमों के अनुष्ठान में उत्पन्न बाधा को दूर करने का उपाय निम्न में से क्या है?
1. योगाभास
2. प्रतिपक्ष भावना
3. प्रत्याहार
4. संयम

19. निम्नलिखित में से किस आसन का सिद्धसिद्धांत पद्धति में उल्लेख नहीं किया गया है?
1. स्वस्तिकासन
2. उग्रासन
3. सिद्धासन
4. पद्मासन

20. आप योग कक्षा के आयोजन के लिए सर्वप्रथम क्या करते हैं?
1. परिचय
2. प्रदर्शन
3. परिवेश का निर्माण
4. अभ्यास का विश्लेषण 

21. “घेरण्डसंहिता' के अनुसार कौन से षटकर्म दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं?
(a) नेति            (b) त्राटक
(c) कपालभाति (d) लौलिकी
सही विकल्प चुनिए :
1. (a) और (c)
2. (b) और (c)
3. (b) और (d)
4: (a) और (b)
22. “भगवदगीता' के अनुसार ध्यान में बैठने की व्यवस्था में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों का क्रम है
1. चर्म, कपड़ा, कुशाघास
2. कपड़ा, चर्म, कुशाघास
3. चर्म, कुशाघास, कपड़ा
4. कुशाघास, चर्म, कपड़ा

23. परमेश्वर का स्वरूप व उसकी महिमा श्वेताश्वतर उपनिषद्‌ के किस अध्याय में वर्णित नहीं है?
1. द्वितीय अध्याय में
2. चतुर्थ अध्याय में
3. पंचम अध्याय में
4. षष्ठम्‌ अध्याय में

24. “ध्यानबिन्दु' उपनिषद्‌ के अनुसार ओंकार के आकार में कौन से वर्ण और गुण हैं?
1. श्वेत वर्ण और सतोगुण
2. पीत वर्ण और रजोगुण
3. कृष्ण वर्ण और तमोगुण
4. ताम्र वर्ण और रजोगुण

25. हठप्रदीपिका' के अनुसार महाक्लेश एवं मृत्यु का भय निम्न में से किस मुद्रा के अभ्यास से टूर होता है?
1. महामुद्रा         2. महावेध मुद्रा
3. महाबन्ध मुद्रा 4. खेचरी मुद्रा

Answer- 1- (1), 2- (1), 3- (4), 4- (4), 5- (2), 6- (4), 7- (3), 8- (2), 9- (1), 10- (1), 11- (1), 12- (4), 13- (1), 14- (4), 15- (3), 16- (2), 17- (4), 18- (2), 19- (2), 20- (3), 21- (4), 22- (4), 23- (2), 24- (2), 25- (1)


To be continuous......  

Comments

Popular posts from this blog

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ आधार (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार आधार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार (12) भ्रूमध्य आधार (13) नासिका आधार (14) नासामूल कपाट आधार (15) ललाट आधार (16) ब्रहमरंध्र आधार सिद्ध...

हठयोग प्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म

हठप्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म हठयोगप्रदीपिका हठयोग के महत्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक हैं। इस ग्रन्थ के रचयिता योगी स्वात्माराम जी हैं। हठयोग प्रदीपिका के द्वितीय अध्याय में षटकर्मों का वर्णन किया गया है। षटकर्मों का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम  जी कहते हैं - धौतिर्बस्तिस्तथा नेतिस्त्राटकं नौलिकं तथा।  कपालभातिश्चैतानि षट्कर्माणि प्रचक्षते।। (हठयोग प्रदीपिका-2/22) अर्थात- धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि और कपालभोंति ये छ: कर्म हैं। बुद्धिमान योगियों ने इन छः कर्मों को योगमार्ग में करने का निर्देश किया है। इन छह कर्मों के अतिरिक्त गजकरणी का भी हठयोगप्रदीपिका में वर्णन किया गया है। वैसे गजकरणी धौतिकर्म के अन्तर्गत ही आ जाती है। इनका वर्णन निम्नलिखित है 1. धौति-  धौँति क्रिया की विधि और  इसके लाभ एवं सावधानी- धौँतिकर्म के अन्तर्गत हठयोग प्रदीपिका में केवल वस्त्र धौति का ही वर्णन किया गया है। धौति क्रिया का वर्णन करते हुए योगी स्वात्माराम जी कहते हैं- चतुरंगुल विस्तारं हस्तपंचदशायतम। . गुरूपदिष्टमार्गेण सिक्तं वस्त्रं शनैर्गसेत्।।  पुनः प्रत्याहरेच्चैतदुदितं ध...

"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र

7 Chakras in Human Body हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है। 'चक्र' शब्द का अर्थ-  'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है। योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा ग...

चित्त विक्षेप | योगान्तराय

चित्त विक्षेपों को ही योगान्तराय ' कहते है जो चित्त को विक्षिप्त करके उसकी एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं उन्हें योगान्तराय अथवा योग के विध्न कहा जाता।  'योगस्य अन्तः मध्ये आयान्ति ते अन्तरायाः'।  ये योग के मध्य में आते हैं इसलिये इन्हें योगान्तराय कहा जाता है। विघ्नों से व्यथित होकर योग साधक साधना को बीच में ही छोड़कर चल देते हैं। विध्न आयें ही नहीं अथवा यदि आ जायें तो उनको सहने की शक्ति चित्त में आ जाये, ऐसी दया ईश्वर ही कर सकता है। यह तो सम्भव नहीं कि विध्न न आयें। “श्रेयांसि बहुविध्नानि' शुभकार्यों में विध्न आया ही करते हैं। उनसे टकराने का साहस योगसाधक में होना चाहिए। ईश्वर की अनुकम्पा से यह सम्भव होता है।  व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः (योगसूत्र - 1/30) योगसूत्र के अनुसार चित्त विक्षेपों  या अन्तरायों की संख्या नौ हैं- व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति, भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमिकत्व और अनवस्थितत्व। उक्त नौ अन्तराय ही चित्त को विक्षिप्त करते हैं। अतः ये योगविरोधी हैं इन्हें योग के मल...

योगसूत्र के अनुसार ईश्वर का स्वरूप

 ईश्वर-  ईश्वर के बारे में कहा है- “ईश्वरः ईशनशील इच्छामात्रेण सकलजगदुद्धरणक्षम:। अर्थात जो सब कुछ अर्थात समस्त जगत को केवल इच्छा मात्र से ही उत्पन्न और नष्ट करने में सक्षम है, वह ईश्वर है। ईश्वर के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं परन्तु आधार सभी का लगभग एक ही है। इसी श्रृंखला में यदि अध्ययन किया जाए तो शंकराचार्य , रामानुजाचार्य , मध्वाचार्य , निम्बार्काचार्य , वल्लभाचार्य तथा महर्षि दयानन्द के विचार विशिष्ट प्रतीत होते हैं।  विविध विद्वानों के अनुसार ईश्वर- क. शंकराचार्य जी-  आचार्य शंकर के मतानुसार ब्रह्म अंतिम सत्य है। परमार्थ और व्यवहार रूप में भेद है। परमार्थ रुप से ब्रह्म निर्गुण, निर्विशेष, निश्चल, नित्य, निर्विकार, असंग, अखण्ड, सजातीय -विजातीय -स्वगत भेद से रहित, कूटस्थ, एक, शुद्ध, चेतन, नित्यमुक्त, स्वयम्भू हैं। उपनिषद में भी ऐसा ही कहा गया है । श्रुतियों से ब्रह्म के निर्गुणत्व, निर्विशेषत्व तथा चैतन्य स्वरूप का प्रमाण मिलता है। माया के कारण भी ब्रह्म में द्वैत नहीं आता क्योंकि यह माया सत् और असत् से विलक्षण वस्तु है। ब्रह्म ही जगत का उपादान व न...

चित्त प्रसादन के उपाय

महर्षि पतंजलि ने बताया है कि मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा इन चार प्रकार की भावनाओं से भी चित्त शुद्ध होता है। और साधक वृत्तिनिरोध मे समर्थ होता है 'मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम्' (योगसूत्र 1/33) सुसम्पन्न व्यक्तियों में मित्रता की भावना करनी चाहिए, दुःखी जनों पर दया की भावना करनी चाहिए। पुण्यात्मा पुरुषों में प्रसन्नता की भावना करनी चाहिए तथा पाप कर्म करने के स्वभाव वाले पुरुषों में उदासीनता का भाव रखे। इन भावनाओं से चित्त शुद्ध होता है। शुद्ध चित्त शीघ्र ही एकाग्रता को प्राप्त होता है। संसार में सुखी, दुःखी, पुण्यात्मा और पापी आदि सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के प्रति साधारण जन में अपने विचारों के अनुसार राग. द्वेष आदि उत्पन्न होना स्वाभाविक है। किसी व्यक्ति को सुखी देखकर दूसरे अनुकूल व्यक्ति का उसमें राग उत्पन्न हो जाता है, प्रतिकूल व्यक्ति को द्वेष व ईर्ष्या आदि। किसी पुण्यात्मा के प्रतिष्ठित जीवन को देखकर अन्य जन के चित्त में ईर्ष्या आदि का भाव उत्पन्न हो जाता है। उसकी प्रतिष्ठा व आदर को देखकर दूसरे अनेक...

घेरण्ड संहिता के अनुसार ध्यान

घेरण्ड संहिता में वर्णित  “ध्यान“  घेरण्ड संहिता के छठे अध्याय में ध्यान को परिभाषित करते हुए महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि किसी विषय या वस्तु पर एकाग्रता या चिन्तन की क्रिया 'ध्यान' कहलाती है। जिस प्रकार हम अपने मन के सूक्ष्म अनुभवों को अन्‍तःचक्षु के सामने मन:दृष्टि के सामने स्पष्ट कर सके, यही ध्यान की स्थिति है। ध्यान साधक की कल्पना शक्ति पर भी निर्भर है। ध्यान अभ्यास नहीं है यह एक स्थिति हैं जो बिना किसी अवरोध के अनवरत चलती रहती है। जिस प्रकार तेल को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डालने पर बिना रूकावट के मोटी धारा निकलती है, बिना छलके एक समान स्तर से भरनी शुरू होती है यही ध्यान की स्थिति है। इस स्थिति में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं होती। महर्षि घेरण्ड ध्यान के प्रकारों का वर्णन छठे अध्याय के प्रथम सूत्र में करते हुए कहते हैं कि - स्थूलं ज्योतिस्थासूक्ष्मं ध्यानस्य त्रिविधं विदु: । स्थूलं मूर्तिमयं प्रोक्तं ज्योतिस्तेजोमयं तथा । सूक्ष्मं विन्दुमयं ब्रह्म कुण्डली परदेवता ।। (घेरण्ड संहिता  6/1) अर्थात्‌ ध्यान तीन प्रकार का है- स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान। स्थू...

हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध

  हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध हठयोग प्रदीपिका में मुद्राओं का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम जी ने कहा है महामुद्रा महाबन्धों महावेधश्च खेचरी।  उड़्डीयानं मूलबन्धस्ततो जालंधराभिध:। (हठयोगप्रदीपिका- 3/6 ) करणी विपरीताख्या बज़्रोली शक्तिचालनम्।  इदं हि मुद्रादश्क जरामरणनाशनम्।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/7) अर्थात महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयानबन्ध, मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, विपरीतकरणी, वज़्रोली और शक्तिचालनी ये दस मुद्रायें हैं। जो जरा (वृद्धा अवस्था) मरण (मृत्यु) का नाश करने वाली है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है।  1. महामुद्रा- महामुद्रा का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है- पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम्।  प्रसारितं पद कृत्या कराभ्यां धारयेदृढम्।।  कंठे बंधं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वतः।  यथा दण्डहतः सर्पों दंडाकारः प्रजायते  ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेतत् ।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/9,10)  अर्थात् बायें पैर को एड़ी को गुदा और उपस्थ के मध्य सीवन पर दृढ़ता से लगाकर दाहिने पैर को फैला कर रखें...

योग आसनों का वर्गीकरण एवं योग आसनों के सिद्धान्त

योग आसनों का वर्गीकरण (Classification of Yogaasanas) आसनों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है (1) ध्यानात्मक आसन- ये वें आसन है जिनमें बैठकर पूजा पाठ, ध्यान आदि आध्यात्मिक क्रियायें की जाती है। इन आसनों में पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन आदि प्रमुख है। (2) व्यायामात्मक आसन- ये वे आसन हैं जिनके अभ्यास से शरीर का व्यायाम तथा संवर्धन होता है। इसीलिए इनको शरीर संवर्धनात्मक आसन भी कहा जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य के संरक्षण तथा रोगों की चिकित्सा में भी इन आसनों का महत्व है। इन आसनों में सूर्य नमस्कार, ताडासन,  हस्तोत्तानासन, त्रिकोणासन, कटिचक्रासन आदि प्रमुख है। (3) विश्रामात्मक आसन- शारीरिक व मानसिक थकान को दूर करने के लिए जिन आसनों का अभ्यास किया जाता है, उन्हें विश्रामात्मक आसन कहा जाता है। इन आसनों के अन्तर्गत शवासन, मकरासन, शशांकासन, बालासन आदि प्रमुख है। इनके अभ्यास से शारीरिक थकान दूर होकर साधक को नवीन स्फूर्ति प्राप्त होती है। व्यायामात्मक आसनों के द्वारा थकान उत्पन्न होने पर विश्रामात्मक आसनों का अभ्यास थकान को दूर करके त...

सांख्य दर्शन परिचय, सांख्य दर्शन में वर्णित 25 तत्व

सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल है यहाँ पर सांख्य शब्द का अर्थ ज्ञान के अर्थ में लिया गया सांख्य दर्शन में प्रकृति पुरूष सृष्टि क्रम बन्धनों व मोक्ष कार्य - कारण सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन किया गया है इसका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है। 1. प्रकृति-  सांख्य दर्शन में प्रकृति को त्रिगुण अर्थात सत्व, रज, तम तीन गुणों के सम्मिलित रूप को त्रिगुण की संज्ञा दी गयी है। सांख्य दर्शन में इन तीन गुणो कों सूक्ष्म तथा अतेनद्रिय माना गया सत्व गुणो का कार्य सुख रजोगुण का कार्य लोभ बताया गया सत्व गुण स्वच्छता एवं ज्ञान का प्रतीक है यह गुण उर्ध्वगमन करने वाला है। इसकी प्रबलता से पुरूष में सरलता प्रीति,अदा,सन्तोष एवं विवेक के सुखद भावो की उत्पत्ति होती है।    रजोगुण दुःख अथवा अशान्ति का प्रतीक है इसकी प्रबलता से पुरूष में मान, मद, वेष तथा क्रोध भाव उत्पन्न होते है।    तमोगुण दुख एवं अशान्ति का प्रतीक है यह गुण अधोगमन करने वाला है तथा इसकी प्रबलता से मोह की उत्पत्ति होती है इस मोह से पुरूष में निद्रा, प्रसाद, आलस्य, मुर्छा, अकर्मण्यता अथवा उदासीनता के भाव उत्पन्न होते है सा...