Skip to main content

वायु तत्व का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व

पंचतत्वों का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व

2. वायु तत्व का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व-  

Effect and importance of air element on human body- पंच महाभूतों में आकाश तत्व के बाद वायु का स्थान है आकाश तत्व की प्राप्ति होते ही वायु तत्व स्वयं उत्पन्न हो जाता है। यह अन्य तत्वों की उत्पत्ति करने वाला भी है। वायु तत्व के बाद अग्नि, जल और पृथ्वी तत्व उत्पन्न होते हैं और विपरीत क्रम से यह तत्व वापस वायु में ही मिलकर लुप्त हो जाते हैं। वैसे तो मनुष्य के जीवन में पांचों तत्व महत्वपूर्ण हैं परन्तु वायु तत्व अपने आप में महत्वपूर्ण तत्व है क्योंकि अन्न, जल, धूप के बिना मनुष्य कुछ दिन जीवित रह सकता है पर वायु के अभाव में कुछ क्षण में ही दम घुटने लगता है।

अतः यह कहा जा सकता है कि वायु ही ज़ीवन है। वायु तत्व हमें जीवन, शक्ति एवं स्फूर्ति प्रदान करता है। इसलिए वायु का पूर्ण लाभ उठाने के लिए उसके शुद्ध रूप को ग्रहण करना जरूर हो जाता है परन्तु आजकल के दूषित वातावरण में यह बहुत ही कठिन है। आये दिन अनेकों प्रकार के रोग और विशेष कर कैंसर आदि रोगो से लोग तीव्र गति से शिकार हो रहे हैं। यदि हम गम्भीरता पूर्वक रोग के कारणों पर विचार करते तो रोग हमसे बहुत दूर होते। क्योंकि देखा जाए तो हमारे रोगी और अस्वस्थ होने के पीछे कारण है तो बस प्रकृति से दूर होना।

आज मनुष्य प्रकृति से दूर होकर पंच तत्वों के असंतुलन से ग्रसित हो जाता है। देखा जाए तो गांव के लोग शहरी जीवन से अधिक सुखमय जीवन बिताते हुए दीर्घायु वाले बनते हैं क्योंकि उनकी जीवन शैली अभी भी ऐसी है कि वह प्रकृति के नजदीक रहते हैं। खेतों में काम करना, स्वच्छ वायु का सेवन करना, पौष्टिक आहार का सेवन करना,  अत्यधिक प्रदूषणों से दूर रहना आदि। शहरों में रहने वाले लोग इन सभी के अभाव में रोगों को बुलावा दे रहे हैं।

अतः वायु तत्व के सम्बन्ध में अच्छी तरह जानने के लिए उसके संगठन एवं उसके विभिन्‍न उपयोगों के बारे में जानते है।

(अ)  श्वास प्रणाली- मनुष्य द्वारा जो आहार ग्रहण किया जाता है उस आहार के दहन के लिए वायु बहुत ही आवश्यक है। हमारी नाक के द्वारा वायु फेफड़ों में पहुंचकर रक्त आक्सीकृत करती है तथा आहार का दहन कर शरीर को उर्जा व शक्ति प्रदान करती है।

(ब) दहन क्रिया- जो आहार हम ग्रहण करते हैं उसके दहन के लिए अर्थात उसे तोड़ने के लिए हमें वायु की आवश्यकता होती है। दहन क्रिया के फलस्वरूप आहार शरीर को उर्जा प्रदान करता है तथा कुछ व्यर्थ पदार्थ जैसे कार्बन डाई आक्साइड तथा अन्य पदार्थ तैयार हो जाते हैं जिन्हे शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

श्वसन क्रिया में प्रयुक्त होने वाले अंग-

(1) नाक (2) गला (3) स्वर यंत्र (4) श्वास नलिका (5) श्वास वाहिनी (6) फेफड़े (7) वक्षस्थल

(1)   नाक-  सर्वप्रथम वायु नाक के द्वारा ही शरीर में प्रवेश करती है। नाक चेहरे के ऊपर कोमल हड्डी से निर्मित होती है इसमें दो नथुने होते हैं। नाक के भीतर एक श्लेष्मिक झिल्ली होती है जिसके ऊपर बाल होते हैं जो कि वायु के साथ आने वाले अन्य धूल कणों, प्रदूषण के कणों विजातीय द्रव्य को शरीर के भीतर जाने से रोकते हैं। नाक के भीतर की श्लेष्मिक झिल्ली शरीर के तापमान के बराबर वायु को नियंत्रित करती है तथा इसी झिल्ली के नीचे गंध का ज्ञान करने वाले नाडी तन्‍तु होते हैं जो कि हमें अनेक गंधों का ज्ञान कराते हैं।

(ख) गला- मुँह एवं नाक के पीछे स्थित भाग को गला कहते हैं यह नीचे की ओर श्वांस नली से और पीछे की ओर आहार नाल से जुड़ी रहती है।

(ग)स्वर यंत्र- यह गले के निचले भाग में तिकोना तथा खोखला है इसके उपर एक पर्दा होता है। भोजन निगलते समय यह पर्दा स्वर यन्त्र के ऊपरी द्वार को ढक देता है।
(घ) श्वास नलिका- स्वर यंत्र के निचले भाग से निकलकर आहार नलिका के आगे से छाती में नीचे की ओर जाती है आगे चलकर यह श्वास नली दो भागों में विभाजित होकर एक दांये फेफड़े में और दूसरी बांये फेफड़े में प्रवेश करती है।

(ड) श्वास वाहिनियाँ- श्वास नलिका दो भागों में विभाजित होती है तथा फेफड़ों में पहुँचकर यह अनेक शाखाओं एवं उप शाखाओं में फैल जाती है। इन उपशाखाओं को वायु वाहिनियाँ कहते हैं।

(च) फेफड़ा- फेफडे को दो भागों में विभाजित होते हैं। दांया फेफड़ा तथा बांया फेफड़ा। दाहिने फेफड़े के तीन भाग हैं और बांयें के दो भाग होते है। सूक्ष्म वायु वाहिनी से वायु फेफड़ों के भीतर प्रवेश करती है जिससे वायुकोष हवा से फूल जाते हैं। फेफड़ों के भीतर धमनी की बारीक शिराएं भी जाल के रूप में स्थित होती हैं। इन शिराओं से अशुद्ध रक्त बहता रहता है।

(छ) वक्षस्थल- छाती के बाहर कशेरूकायें, पसलियाँ और आगे की ओर छाती की हडडी है। यह एक पिंजरे के रूप में है। इन पसलियों के भीतर फेफड़े सुरक्षित रहते हैं। 

मनुष्य श्वांस के द्वारा वायु को नाक से अपने शरीर में प्रवेश कराता है नाक के भीतर श्लेष्मिक झिल्ली तथा बाल होते हैं जो छानकर वायु को शरीर के भीतर जाने देते हैं। फिर वायु नाक से सीधी श्वांस नलिकाओं में होती हुई वायु कोशिकाओं में पहुँचती है। यहाँ पर रक्ताणु जो बारीक रक्त शिराओं में एक समय में एक ही रक्त कण गुजर पाता है। वह वायु से ऑक्सीजन ग्रहण कर लेते हैं। उसी समय वह आक्सीहीमोग्लोबिन बन जाता है तथा कार्बन डाइ आक्साइड, पानी आदि रक्त के अशुद्ध पदार्थ वायु कोष में जाकर प्रश्वास के साथ शरीर द्वारा बाहर कर दिए जाते हैं। 

रक्त का रंग लाल हो जाता है। इसी क्रिया को श्वांस की कार्यप्रणाली तथा रक्त का शुद्धीकरण कहते हैं। जो वायु हम श्वास द्वारा ग्रहण करते हैं उस वायु में पाये जाने वाले तत्व नाइट्रोजज 78 प्रतिशत, ओक्सिजन 20.96 प्रतिशत, कार्बनडाइ आक्साइड 0.04 प्रतिशत, पानी का भाप अनिश्चित आदि पाई जाती है। इस प्रकार वायु में पाये जाने वाले तत्व आदि इसका भाग है। शुद्ध वायु ग्रहण करना बहुत ही आवश्यक है उपरोक्त विवरण से यह ज्ञात होता है कि वायु हमारे लिए कितनी आवश्यक है। 

इसके द्वारा ही आहार का दहन सम्भव हैं। प्राकृतिक रूप से वायु को शुद्ध रखने के लिए विभिन्‍न प्रकार से कार्य किए जा रहे हैं जैसे पेड़ पौधे अधिक से अधिक मात्रा में लगाए जा रहे हैं क्योंकि वनस्पति में क्लोरोफिल नामक हरे रंग का महत्वपूर्ण द्रव्य रहता है जो कार्बन डाइ आक्साइड ग्रहण कर सूर्य की किरणों से उनका पृथककरण करता है। दूसरा प्राकृतिक वर्षा के द्वारा भी वायु स्वच्छ व शुद्ध होता है। वर्षा से कार्बन डाइआक्साइड एवं अन्य विषैले तत्व पानी में मिल जाते हैं जिससे हवा की गन्दगी दूर हो जाती है। इसके अलावा तेज हवा, सूर्य का प्रकाश तथा ओजोन की परत के द्वारा प्रकृति स्वयं ही वायु को शुद्ध करती रहती है। 

स्थास्थ्य की दृष्टि से पर्याप्त मात्रा में शुद्ध वायु की आवश्यकता होती है. जिससे तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। शुद्ध हवा से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिलती है त्वचा का तापमान नियंत्रित होता है तथा जीवनी शक्ति की वृद्धि होती है।


3. अग्नितत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व

4. जलतत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व

5. पृथ्वीतत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व

 

पंच तत्वों का सामान्य परिचय

Comments

Popular posts from this blog

"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र

7 Chakras in Human Body हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है। 'चक्र' शब्द का अर्थ-  'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है। योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा ग...

घेरण्ड संहिता के अनुसार ध्यान

घेरण्ड संहिता में वर्णित  “ध्यान“  घेरण्ड संहिता के छठे अध्याय में ध्यान को परिभाषित करते हुए महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि किसी विषय या वस्तु पर एकाग्रता या चिन्तन की क्रिया 'ध्यान' कहलाती है। जिस प्रकार हम अपने मन के सूक्ष्म अनुभवों को अन्‍तःचक्षु के सामने मन:दृष्टि के सामने स्पष्ट कर सके, यही ध्यान की स्थिति है। ध्यान साधक की कल्पना शक्ति पर भी निर्भर है। ध्यान अभ्यास नहीं है यह एक स्थिति हैं जो बिना किसी अवरोध के अनवरत चलती रहती है। जिस प्रकार तेल को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डालने पर बिना रूकावट के मोटी धारा निकलती है, बिना छलके एक समान स्तर से भरनी शुरू होती है यही ध्यान की स्थिति है। इस स्थिति में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं होती। महर्षि घेरण्ड ध्यान के प्रकारों का वर्णन छठे अध्याय के प्रथम सूत्र में करते हुए कहते हैं कि - स्थूलं ज्योतिस्थासूक्ष्मं ध्यानस्य त्रिविधं विदु: । स्थूलं मूर्तिमयं प्रोक्तं ज्योतिस्तेजोमयं तथा । सूक्ष्मं विन्दुमयं ब्रह्म कुण्डली परदेवता ।। (घेरण्ड संहिता  6/1) अर्थात्‌ ध्यान तीन प्रकार का है- स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान। स्थू...

हठयोग प्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म

हठप्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म हठयोगप्रदीपिका हठयोग के महत्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक हैं। इस ग्रन्थ के रचयिता योगी स्वात्माराम जी हैं। हठयोग प्रदीपिका के द्वितीय अध्याय में षटकर्मों का वर्णन किया गया है। षटकर्मों का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम  जी कहते हैं - धौतिर्बस्तिस्तथा नेतिस्त्राटकं नौलिकं तथा।  कपालभातिश्चैतानि षट्कर्माणि प्रचक्षते।। (हठयोग प्रदीपिका-2/22) अर्थात- धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि और कपालभोंति ये छ: कर्म हैं। बुद्धिमान योगियों ने इन छः कर्मों को योगमार्ग में करने का निर्देश किया है। इन छह कर्मों के अतिरिक्त गजकरणी का भी हठयोगप्रदीपिका में वर्णन किया गया है। वैसे गजकरणी धौतिकर्म के अन्तर्गत ही आ जाती है। इनका वर्णन निम्नलिखित है 1. धौति-  धौँति क्रिया की विधि और  इसके लाभ एवं सावधानी- धौँतिकर्म के अन्तर्गत हठयोग प्रदीपिका में केवल वस्त्र धौति का ही वर्णन किया गया है। धौति क्रिया का वर्णन करते हुए योगी स्वात्माराम जी कहते हैं- चतुरंगुल विस्तारं हस्तपंचदशायतम। . गुरूपदिष्टमार्गेण सिक्तं वस्त्रं शनैर्गसेत्।।  पुनः प्रत्याहरेच्चैतदुदितं ध...

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ आधार (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार आधार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार (12) भ्रूमध्य आधार (13) नासिका आधार (14) नासामूल कपाट आधार (15) ललाट आधार (16) ब्रहमरंध्र आधार सिद्ध...

UGC NET YOGA Upanishads MCQs

1. "योगकुण्डलिनी उपनिषद" में कौन-सी चक्र प्रणाली का वर्णन किया गया है? A) त्रिचक्र प्रणाली B) पंचचक्र प्रणाली C) सप्तचक्र प्रणाली D) दशचक्र प्रणाली ANSWER= (C) सप्तचक्र प्रणाली Check Answer   2. "अमृतबिंदु उपनिषद" में किसका अधिक महत्व बताया गया है? A) आसन की साधना B) ज्ञान की साधना C) तपस्या की साधना D) प्राणायाम की साधना ANSWER= (B) ज्ञान की साधना Check Answer   3. "ध्यानबिंदु उपनिषद" के अनुसार ध्यान का मुख्य उद्देश्य क्या है? A) शारीरिक शक्ति बढ़ाना B) सांसारिक सुख प्राप्त करना C) मानसिक शांति प्राप्त करना D) आत्म-साक्षात्कार ANSWER= (D) आत्म-साक्षात्कार Check Answer   4. "योगतत्त्व उपनिषद" के अनुसार योगी को कौन-सा गुण धारण करना चाहिए? A) सत्य और संयम B) अहंकार C) क्रोध और द्वेष D) लोभ और मोह ...

MCQs for UGC NET YOGA (Yoga Upanishads)

1. "योगचूड़ामणि उपनिषद" में कौन-सा मार्ग मोक्ष का साधक बताया गया है? A) भक्तिमार्ग B) ध्यानमार्ग C) कर्ममार्ग D) ज्ञानमार्ग ANSWER= (B) ध्यानमार्ग Check Answer   2. "नादबिंदु उपनिषद" में किस साधना का वर्णन किया गया है? A) ध्यान साधना B) मंत्र साधना C) नादयोग साधना D) प्राणायाम साधना ANSWER= (C) नादयोग साधना Check Answer   3. "योगशिखा उपनिषद" में मोक्ष प्राप्ति का मुख्य साधन क्या बताया गया है? A) योग B) ध्यान C) भक्ति D) ज्ञान ANSWER= (A) योग Check Answer   4. "अमृतनाद उपनिषद" में कौन-सी शक्ति का वर्णन किया गया है? A) प्राण शक्ति B) मंत्र शक्ति C) कुण्डलिनी शक्ति D) चित्त शक्ति ANSWER= (C) कुण्डलिनी शक्ति Check Answer   5. "ध्यानबिंदु उपनिषद" में ध्यान का क...

MCQs on “Yoga Upanishads” in Hindi for UGC NET Yoga Paper-2

1. "योगतत्त्व उपनिषद" का मुख्य विषय क्या है? A) हठयोग की साधना B) राजयोग का सिद्धांत C) कर्मयोग का महत्व D) भक्ति योग का वर्णन ANSWER= (A) हठयोग की साधना Check Answer   2. "अमृतनाद उपनिषद" में किस योग पद्धति का वर्णन किया गया है? A) कर्मयोग B) मंत्रयोग C) लययोग D) कुण्डलिनी योग ANSWER= (D) कुण्डलिनी योग Check Answer   3. "योगछूड़ामणि उपनिषद" में मुख्य रूप से किस विषय पर प्रकाश डाला गया है? A) प्राणायाम के भेद B) मोक्ष प्राप्ति का मार्ग C) ध्यान और समाधि D) योगासनों का महत्व ANSWER= (C) ध्यान और समाधि Check Answer   4. "ध्यानबिंदु उपनिषद" में किस ध्यान पद्धति का उल्लेख है? A) त्राटक ध्यान B) अनाहत ध्यान C) सगुण ध्यान D) निर्गुण ध्यान ANSWER= (D) निर्गुण ध्यान Check Answer ...

योगसूत्र के अनुसार ईश्वर का स्वरूप

 ईश्वर-  ईश्वर के बारे में कहा है- “ईश्वरः ईशनशील इच्छामात्रेण सकलजगदुद्धरणक्षम:। अर्थात जो सब कुछ अर्थात समस्त जगत को केवल इच्छा मात्र से ही उत्पन्न और नष्ट करने में सक्षम है, वह ईश्वर है। ईश्वर के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं परन्तु आधार सभी का लगभग एक ही है। इसी श्रृंखला में यदि अध्ययन किया जाए तो शंकराचार्य , रामानुजाचार्य , मध्वाचार्य , निम्बार्काचार्य , वल्लभाचार्य तथा महर्षि दयानन्द के विचार विशिष्ट प्रतीत होते हैं।  विविध विद्वानों के अनुसार ईश्वर- क. शंकराचार्य जी-  आचार्य शंकर के मतानुसार ब्रह्म अंतिम सत्य है। परमार्थ और व्यवहार रूप में भेद है। परमार्थ रुप से ब्रह्म निर्गुण, निर्विशेष, निश्चल, नित्य, निर्विकार, असंग, अखण्ड, सजातीय -विजातीय -स्वगत भेद से रहित, कूटस्थ, एक, शुद्ध, चेतन, नित्यमुक्त, स्वयम्भू हैं। उपनिषद में भी ऐसा ही कहा गया है । श्रुतियों से ब्रह्म के निर्गुणत्व, निर्विशेषत्व तथा चैतन्य स्वरूप का प्रमाण मिलता है। माया के कारण भी ब्रह्म में द्वैत नहीं आता क्योंकि यह माया सत् और असत् से विलक्षण वस्तु है। ब्रह्म ही जगत का उपादान व न...

हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध

  हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध हठयोग प्रदीपिका में मुद्राओं का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम जी ने कहा है महामुद्रा महाबन्धों महावेधश्च खेचरी।  उड़्डीयानं मूलबन्धस्ततो जालंधराभिध:। (हठयोगप्रदीपिका- 3/6 ) करणी विपरीताख्या बज़्रोली शक्तिचालनम्।  इदं हि मुद्रादश्क जरामरणनाशनम्।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/7) अर्थात महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयानबन्ध, मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, विपरीतकरणी, वज़्रोली और शक्तिचालनी ये दस मुद्रायें हैं। जो जरा (वृद्धा अवस्था) मरण (मृत्यु) का नाश करने वाली है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है।  1. महामुद्रा- महामुद्रा का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है- पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम्।  प्रसारितं पद कृत्या कराभ्यां धारयेदृढम्।।  कंठे बंधं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वतः।  यथा दण्डहतः सर्पों दंडाकारः प्रजायते  ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेतत् ।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/9,10)  अर्थात् बायें पैर को एड़ी को गुदा और उपस्थ के मध्य सीवन पर दृढ़ता से लगाकर दाहिने पैर को फैला कर रखें...

Information and Communication Technology विषय पर MCQs (Set-3)

  1. "HTTPS" में "P" का अर्थ क्या है? A) Process B) Packet C) Protocol D) Program ANSWER= (C) Protocol Check Answer   2. कौन-सा उपकरण 'डेटा' को डिजिटल रूप में परिवर्तित करता है? A) हब B) मॉडेम C) राउटर D) स्विच ANSWER= (B) मॉडेम Check Answer   3. किस प्रोटोकॉल का उपयोग 'ईमेल' भेजने के लिए किया जाता है? A) SMTP B) HTTP C) FTP D) POP3 ANSWER= (A) SMTP Check Answer   4. 'क्लाउड स्टोरेज' सेवा का एक उदाहरण क्या है? A) Paint B) Notepad C) MS Word D) Google Drive ANSWER= (D) Google Drive Check Answer   5. 'Firewall' का मुख्य कार्य क्या है? A) फाइल्स को एनक्रिप्ट करना B) डेटा को बैकअप करना C) नेटवर्क को सुरक्षित करना D) वायरस को स्कैन करना ANSWER= (C) नेटवर्क को सुरक्षित करना Check Answer   6. 'VPN' का पू...