महर्षि पतंजलि के जीवन परिचय के बारे यह स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है कि महर्षि पतंजलि का जन्म कब हुआ, किन्तु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि महर्षि पतंजलि भगवान् कपिल के पश्चात् और अन्य चारों दर्शनकारों से बहुत पूर्व हुए हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि पाणिनि व्याकरण का महाभाष्य तथा वैधक की चरक संहिता व योगदर्शन की रचना महर्षि पतंजलि ने ही की है। कहा भी गया है कि-
“योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैधकेन।
योऽपाकरोतं प्रवरं मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोऽस्मि“ ॥
अर्थात् महर्षि पतंजलि ने मनुष्य के चित्त की शुद्धि के लिए योगसूत्र, वाणी की शुद्धि के लिए व्याकरण के ग्रन्थ महाभाष्य तथा शरीर की शुद्धि के लिए चरक संहिता की रचना की। ये तीनो ग्रन्थ अपने क्षेत्र के अद्वितीय ग्रन्थ माने जाते हैं। क्योंकि इसके पश्चात् इन क्षेत्रों में जो भी कार्य हुआ, इन्हीं ग्रन्थों को आधार मानकर हुआ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार महर्षि पतंजलि को शेषनाग का अवतार माना गया है। महर्षि पतंजलि को काशी में एक बावड़ी पर पाणिनि मुनि के समक्ष सर्प रुप में प्रकट होना बतलाया गया है। इसके पश्चात् सर्प के आदेशानुसार एक चादर की आड़ लगा दी गयी। शेषनाग अपने हजारों मुखों से एक साथ प्रश्नकर्ताओं के उत्तर देने लगे। इस प्रकार सारा महाभाष्य तैयार हो गया। किन्तु सर्प की आज्ञा थी कि कोई पुरुष चादर को उठाकर अन्दर न देखे, एक व्यक्ति द्वारा उल्लंघन किये जाने पर शेषनाग की फुंकार से ब्राह्मणों के सारे कागज जल गये। ब्राह्मणों की दुःखी अवस्था को देखकर एक यक्ष ने जो वृक्ष पर बैठा पत्तों पर भाष्य लिखता जा रहा था, वे पत्ते उनके पास फेंक दिये। उन पतों में से कुछ को बकरी खा गयी। इसी लिए कुछ स्थानों में भाष्य में असंगति सी पायी जाती है।
याराशर्प शिलालिभ्यां भिक्षुनट सूत्रयोः ।। (अ0 4/3/110)
अष्टाध्यायी के उपर्युक्त सूत्र में व्यास जी का पाणिनि मुनि से पूर्व होना सिद्ध होता है फिर भी पाणिनि मुनि की अष्टाध्यायी पर महाभाष्यकर्ता योगसूत्रकार पतंजलि किस प्रकार हो सकते हैं।
जे.एच. बूड्स के मत में योगसूत्र के महर्षि पतंजलि व्याकरण महाभाष्यकार पतंजलि से भिन्न व्यक्ति थे। क्योंकि दोनों आचार्यो ने द्रव्य के लक्षण को भिन्न- भिन्न दिया है। इनकी जन्मतिथि के संबन्ध में बहुत कुछ निश्चित न होने पर भी सूत्रों में विज्ञान वाद का खण्डन होने के कारण यह कहा जाता है कि ये वसुबंध के परवर्ती थे और इसी कारण पतंजलि से इनका बहुत बाद में होना निश्चित प्राय. है। इनका जीवन काल (300-400 ई.) के मध्य में निश्चित किया जा सकता है। बुड्स महोदय ने कई तथ्यों के आधार पर यह निश्चित किया है कि योगसूत्रकार पतंजलि, महाभाष्यकार पतंजलि से सर्वथा भिन्न थे और इन्होंने चौथी या पांचवी शताब्दी में योगसूत्र की रचना की थी।
Comments
Post a Comment