गायत्री- मन्त्र का अर्थ (हिन्दी में) गायत्री-मन्त्र ओउम् भूर्भुवः स्व: । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गों देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ (१) ओंकार की तीन मात्राएँ- - अकार, उकार, मकार और चौथा अमात्र विराम । अकार -- एक मात्रा वाले विराट् जो स्थूल जगत के सम्बन्ध से परमात्मा का नाम है। फल-- पाँचों स्थूल भूतों और उनसे बने हुए पदार्थोको आत्मोन्नति में बाधक होने से हटाकर साधक बनाने वाला अपने विराट रूप के साथ स्थूल जगत् के ऐश्वर्य का उपभोग कराने वाला। उकार-- दो मात्रा वाले हिरण्यगर्भ जो सूक्ष्म जगत् में सम्बन्धसे परमात्माका नाम है। फल-- पाँचों स्थूल-सूक्ष्म भूतों और अहंकार आदि को आत्मोन्नति में बाधक होने से हटाकर साधक बनाने वाला, अप...