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योगसूत्र के अनुसार पंचक्लेश (Panchaklesha)

पतंजलि के योगसूत्र में योग की गूढ़ अवधारणाओं को सरल और व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है। योगसूत्र में चित्त की विभिन्न अवस्थाओं और विक्षेपों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न साधन बताए गए हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है पंचक्लेश, जो मनुष्य के दुखों और बाधाओं के मूल कारणों की व्याख्या करता है। पतंजलि के अनुसार, जब तक इन क्लेशों का निवारण नहीं किया जाता, तब तक व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।

पंचक्लेश की परिभाषा

संस्कृत में "क्लेश" का अर्थ होता है दुख, कष्ट या पीड़ा योगसूत्र (2.3) में कहा गया है:

"अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः।"

अर्थात, पाँच प्रकार के क्लेश होते हैंअविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश ये क्लेश व्यक्ति के मन में विक्षेप उत्पन्न कर उसे बंधन में डालते हैं और जीवन में अज्ञान दुःख का कारण बनते हैं।

पंचक्लेश-

1. अविद्या (अज्ञान)

अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम् (योगसूत्र - 2/4 )

"अविद्या (अज्ञान) अन्य सभी क्लेशों (अस्मिता,राग, द्वेष, अभिनिवेश,) का क्षेत्र (मूल कारण) है, जो प्रसुप्त (सुप्त अवस्था में), तनु (क्षीण अवस्था में), विच्छिन्न (अस्थायी रूप से बाधित), और उदार (पूर्ण रूप से प्रकट)—इन चार अवस्थाओं में प्रकट होते हैं।"

अविद्या (अज्ञान) सभी मानसिक क्लेशों का मूल कारण है। जब हम सत्य को नहीं पहचानते और मिथ्या धारणाओं में जीते हैं, तो यह अविद्या कहलाती है।

चार अवस्थाएँ:-

प्रसुप्त:- जब क्लेश पूरी तरह निष्क्रिय होता है।

तनु:- जब यह हल्का या कमजोर होता है

विच्छिन्न:- जब यह अस्थायी रूप से बाधित होता है लेकिन फिर जागृत हो सकता है।

उदार:- जब यह पूरी तरह सक्रिय और प्रभावी होता है।

अनित्याशुचिदुःखानात्मसु  नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या (योगसूत्र - 2/5)

अविद्या को सभी क्लेशों की जड़ माना गया है। यह वास्तविकता की सही समझ का अभाव है। जब व्यक्ति अनित्य (क्षणभंगुर) को नित्य (शाश्वत), अशुद्ध को शुद्ध, दुःख को सुख और आत्मा से भिन्न को आत्मा मान लेता है, तब यह अविद्या कहलाती है। यही कारण है कि मनुष्य मोह में पड़ जाता है और दुखों का शिकार होता है।

2. अस्मिता (अहंकार)

दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्मिता (योगसूत्र - 2/6)

इस सूत्र का अर्थ है कि "दृग्" (देखने वाला, यानी आत्मा) और "दर्शनशक्ति" (देखने की शक्ति, यानी बुद्धि) की एकता ही अस्मिता (अहंकार) कहलाती है।

अस्मिता का अर्थ है "अहम्" या "अहंकार" जब व्यक्ति स्वयं को अपने शरीर, मन और बुद्धि तक सीमित मानने लगता है, तो अहंकार उत्पन्न होता है। अस्मिता के कारण व्यक्ति अपने सच्चे स्वरूप से विमुख हो जाता है और माया में फँसकर स्वयं को आत्मा के बजाय देह मान बैठता है। यही अहंकार उसे आत्म-साक्षात्कार से दूर रखता है।

3. राग (आसक्ति)

सुखानुशयी राग: (योगसूत्र - 2/7)

राग का अर्थ है वासनाओं और इच्छाओं के प्रति आकर्षण। जब व्यक्ति किसी सुखद अनुभव से जुड़ जाता है और बार-बार उसे प्राप्त करने की लालसा रखता है, तो यह राग कहलाता है। यह मोह और वासना को जन्म देता है, जिससे व्यक्ति भौतिक सुखों के पीछे भागता रहता है। यह अंततः दुख का कारण बनता है, क्योंकि कोई भी सांसारिक वस्तु स्थायी नहीं होती।

4.  द्वेष (घृणा)

दुःखानुशयी द्वेष: (योगसूत्र - 2/8)

द्वेष राग का विपरीत है। जब व्यक्ति किसी अप्रिय अनुभव से बचने या उससे घृणा करने लगता है, तो द्वेष उत्पन्न होता है। यह नकारात्मक भावना व्यक्ति के भीतर क्रोध, ईर्ष्या और प्रतिशोध जैसी भावनाओं को जन्म देती है, जिससे मानसिक अशांति बनी रहती है। द्वेष भी व्यक्ति को आत्मज्ञान से दूर रखता है।

5. अभिनिवेश (मृत्यु भय)

स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारुढोऽभिनिवेश: (योगसूत्र - 2/9)

अभिनिवेश का अर्थ है मृत्यु का भय या जीवन के प्रति अत्यधिक मोह। यह भय जन्म-जन्मांतर से संचित संस्कारों के कारण उत्पन्न होता है। व्यक्ति मृत्यु से बचने के लिए हर संभव प्रयास करता है, किंतु इस भय से मुक्त नहीं हो पाता। यह क्लेश उसे सांसारिक बंधनों में जकड़कर रखता है और उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा डालता है।

मृत्यु का भय (अभिनिवेश) इतना गहरा और स्वाभाविक होता है कि यह केवल सामान्य लोगों में ही नहीं, बल्कि ज्ञानी (विद्वान) व्यक्ति में भी विद्यमान रहता है। यह भय पूर्व जन्मों के अनुभवों से उत्पन्न होता है और सहज रूप से सभी जीवों में विद्यमान रहता है।

पंचक्लेश से मुक्त होने का उपाय

पतंजलि के अनुसार, योगाभ्यास और ध्यान के माध्यम से इन क्लेशों का नाश किया जा सकता है। योगसूत्र (2.11) में कहा गया है:

"ध्यानहेयास्तद्वृत्तयः।"

अर्थात, ध्यान के माध्यम से इन क्लेशों को समाप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, विवेकख्याति (सच्चे ज्ञान की प्राप्ति), वैराग्य (संयम) और अभ्यास (लगातार अभ्यास) द्वारा भी क्लेशों को नियंत्रित किया जा सकता है।

पंचक्लेश मनुष्य के दुःखों के मूल कारण हैं। अविद्या के कारण अन्य चार क्लेश जन्म लेते हैं और व्यक्ति को सांसारिक मोह में फँसाए रखते हैं। योग के अभ्यास, ध्यान और आत्मज्ञान के माध्यम से इन क्लेशों का नाश किया जा सकता है और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। योगसूत्र में वर्णित पंचक्लेश का सिद्धांत आत्मबोध और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

क्रियायोग

चित्त विक्षेप (योगान्तराय)

अभ्यास और वैराग्य

चित्त प्रसादन के उपाय

योगसूत्र के अनुसार ईश्वर का स्वरूप

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